कविताविचार

अब नहीं इतना समय

अब नहीं इतना समय

अब नहीं इतना समय कि

मैं तुम्हारी याद लेकर

दो डगर भटकूं

दो पहर भटकूं

इस समय मै उस जगह हूं

जिस जगह के लोग तुमको

जानते पहचानते हैं

और जिन के सामने- तुमसे

जुड़ी कोई पुरानी और सुहानी

बात अधरों तक बुलाना

प्यार झुटलाने सरीखी वेदना है

और चुप रहना तुम्हारी बात न करना

निरंतर यातना है।

किंतु ऐसी जिंदगी कब तक चलेगी

और थोड़े समय में

 जब तुम न होंगे

और तुम्हें यह जानने पहचानने

वाले न होंगे

कब तुम्हारा नाम भरकर कंठ में

हर अधूरी रात की

 निस्तब्धता को भंग करता

हर डगर भटका करूंगा

हर पहर भटका करूंगा,

किंतु अब नहीं इतना समय

कि मैं तुम्हारी याद लेकर

दो डगर भटकूं, दो पहर भटकूं!

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