अब नहीं इतना समय कि
मैं तुम्हारी याद में
दो डगर भटकूं
दो पहर भटकूं
इस समय मैं उस जगह हूँ
जिस जगह कि लोग तुम्हें
जानते पहचानते हैं
और जिनके सामने तुम से
जुड़ी कोई पुरानी और सुहानी बात
अधरों तक बुलाना
प्यार झुटलाने सरीखी वेदना है
और चुप रहना , तुम्हारी बात न करना
निरंतर यातना है
किन्तु ऐसी जिंदगी कब तक चलेगी
और थोड़े समय में जब तुम न होंगे
और तुम्हे ये जानने पहचानने वाले न होंगे
तब तुम्हारा नाम भर कर कंठ में
हर अधूरी रात की निस्तब्धता को भंग करता
हर डगर भटका करूंगा
हर पहर भटका करूंगा
किन्तु – अब नहीं इतना समय कि
मैं तुम्हारी याद लेकर
दो डगर भटकूं, दो पहर भटकूं।