उत्तरी अमेरिका के मूलनिवासियों का उन्मूलन
मैं तुमसे जुदा हो रहा हूँ और इस के बाद
मेरी चेतावनी भी तुम तक नहीं पहुँचेगी …..
….कितनी ही बर्फीली ऋतुएं मैंने अपने शरीर पर झेली हैं
लेकिन मैं अब एक बूढ़ा पेड़ हूँ
और अधिक खड़ा नहीं रह सकता।
मेरा बूढ़ा शरीर शीघ्र ही धरती पर पसर जाएगा
और तब हमारे शत्रु का नाचता हुआ पाँव
मेरे वक्ष पर सुरक्षित टिक सकेगा
यह मत सोचो कि मैं अपने लिए शोक करता हूँ
मैं तो उम्र की सीमा से दूर अपने पिताओं की
आत्मा में समाहित हो जाऊंगा,
पर मेरा हृदय व्यथित होता है जब मैं
सोचता हूं कि मेरे लोग टूट कर बिखर जायेंगे
और भुला दिए जायेंगे – ”लाल कुर्ती”
वैश्विक समस्तीकरण और एकरूपता की बात जब कौंधती है तो सब से अधिक ध्यान आकर्षित करने वाली सांस्कृतिक ईकाई उन लोगों की है जो उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका की सब से प्राचीन जनजातियां हैं – जिन्हें अमेरिका में इंडियन, कैनेडा में प्रथम राष्ट्र (FirstNations) और अलास्का में मूल एलास्कन (AlsakanNative) के नाम से बरबस सहन किया जाता है। एस्किमो अपने आप को एस्किमो ही कहलाना पसंद करते हैं, हालांकि वे उसी मूल के हैं जो साईबेरिया से हो कर अलास्का के हिम पथ (जमा हुआ बेरिंग स्ट्रेट) को पार करते हुए दो महाद्वीपों में फैल गए थे। इन की यह भू-हिम यात्रा शायद सदियों तक जारी रही जब तक बेरिंग स्ट्रेट की बर्फ पिघल कर समुद्री विशाल जल का भाग नहीं बन गई। ये सब अलग-अलग जातियां अपने आप को अलग-अलग राष्ट्र मान कर संचालित होती हैं। बहुत अंतर न होते हुए भी इन के विश्वास, रीति-रिवाज़, प्रकृति-समृद्घ जीवन पद्घतियां ऊपरी तौर पर अलग होने का आभास ज़रूर देती हैं। एलास्का की इनुईट, यूपिक, अलूत जातियां – उत्तरी अमेरिका की अपाची, होपी, नयाहो, पाब्लो, मोहाव, मिनोमिनि, शायेन, चिरोकी इत्यादि जनजातियों से अपने अस्तित्व-अनुभवों और पराभौतिक विश्वासों में एकरूप होते हुए भी अपनी अपनी लौकिकता में काफी भिन्न हैं।
अमेरिकी महाद्वीपों पर इन का अस्तित्व कम से कम बीस हजार साल या इस से भी अधिक पुराना तो है ही। अलग-अलग धारणायें इतिहासकारों और मानव शास्त्रियों की इन के यहाँ आकर बस जाने की हैं। लेकिन एशिया के कुछ भागों से यहां आकर, इस विस्तृत अन्तराल में इन लोगों ने बड़ी समृद्घ संस्कृतियों, शहरी सभ्यताओं और आध्यात्मिक-वैज्ञानिक मान्यताओं का सूत्रपात किया। सुगम भूभार्ग और प्रशासन प्रणालियां मध्य और दक्षिण अमेरिका में विकसित हुईं। उत्तरी अमेरिका में भी मिसीसिपी नदी की घाटी में कुछ कृषि समाजों का विकास हुआ।
हैरानी की बात यह है कि उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप पर बसने वाली राष्ट्र जातियां उस दिशा में और उस तरह विकसित क्यों नहीं हुई। जब पंद्रहवी सदी में यूरोपियन, मुख्यतः स्पेनी, फ्रांसीसी और फिर अंग्रेज यहाँ आये तो ये लोग प्रकृति पुत्रों की तरह आज की भाषा में आदिम कहे जाने योग्य तौर तरीकों से ही बन्धे हुए थे। कुछ स्थानों पर कृषि का विकास ज़रूर इन जातियों ने किया था और मक्का इत्यादि उगाया जाता था। लेकिन अधिकतर आखेटक बनकर ही अपनी छोटी-छोटी बस्तियों में खाल के तम्बुओं जैसे घरों में रहने वाले अर्ध या लगभग पूर्ण नग्न मानव समूह – प्रकृति जन्य आशाओं, निराशाओं, भय या उद्यम से उत्प्रेरित जीवन-मरण के भौतिक-अभौतिक विश्वासों से बन्धे, कबीलाई जीवन ही जीते थे। शस्त्रों के नाम पर तीर-कमान, बरछी-भालों से आगे नहीं पहुँचे थे। चिकित्सा कोई एक विकसित पद्घति न हो कर एक दैवी शक्ति सम्पन्न व्यक्ति के प्रछन्न ज्ञान और चमत्कार पर अधिक आधारित थी। हजारों सालों में उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के विकास का यह अन्तर एक ऐतिहासिक रिक्तिता की स्थिति पैदा करता है। आदान-प्रदान की ऐसी अनुपस्थिति और उन्नत समाजों से ऐसी लौह पृथकता अभी तक अबूझ है।
पंद्रहवीं सदी में यूरोप के लोगों ने अमेरिका की धरती पर कदम रखा। देखते ही देखते, इस धरती का रंग-रूप, गंध, भाषा, वस्त्र, भोजन, धर्म-विश्वास इस तरह बदल गया जैसे यह मानव-प्रयत्न का परिणाम न हो कर प्रकृति की ही किसी योजना का हिस्सा हो, जिस की दैत्य छाया में धर्म, लोभ, मोह, क्रूर महत्वकांक्षाएं और रक्त-रंजित सफलतायें जन्म लेती हैं। लाखों की संख्या में जिस तरह इन मानव समूहों का उन्मूलन हुआ, उस पर पड़ा हुआ पर्दा इतना झीना है कि दुनिया के किसी भी देश में रहते हुए लोग उसे आसानी से देख-जान सकते हैं। लेकिन हमेशा ही हम इंसानी कुकृत्यों को भी ऐसी ही सहनशीलता से स्वीकार करते हैं जैसे भूचालों, समुद्री तूफानों और भूस्खलनों को स्वीकार करते हैं – बेबसी, लाचारी और दैव-इच्छा की तरह। ऐसी ही लोक बुद्घि ने इस नर संहार को भी देखा-अनदेखा किया। चुप रहकर अपनी स्वीकृति दर्ज की। अपनी धर्म परायणता और ईश्वर में विश्वास को ढोल बजा-बजा कर सराहा। आज भी धर्म परायणता की स्थिति इस व्यापारी समाज में वैसी ही बनी हुई है, जैसी तब थी।
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”मैं इस बात को शपथ के साथ कह सकता हूँ कि सारी दुनिया में इनसे अच्छे लोग शायद और कोई नहीं। ये अपने पड़ोसी को अपनी तरह ही प्यार करते हैं। इन की बातचीत हमेशा एक मीठी और नम्र हंसी लिए होती है। हालांकि यह सच है कि ये लोग नंगे रहते हैं लेकिन इनका आचरण शालीन और प्रशंसनीय होता है।”
12 अक्तूबर 1492 को कोलंबस ने एल. सालवेदोर की अमेरिकी धरती पर कदम रखा था और इन लोगों को देखकर स्पेन के राजा को उपरोक्त भाव लिखे थे। जाते हुए वह अपने साथ दस ताईनो मूल निवासियों को बन्दी बना कर ले गया था। वह चाहता था कि इन लोगों से काम कराया जाए, इन्हें अपने तौर तरीके सिखाए जाएं। आने वाले चार दशकों में पचास लाख से अधिक यूरोपियन इस धरती पर पहुंच चुके थे। दढ़ियल स्पेनियों ने सोने की खोज में जब इस धरती को छानना शुरू किया तो यहां के मूल निवासियों ने इसका विरोध किया। लेकिन स्पेनियों ने इन लोगों को लूटा, इन के घर जलाए, इनकी औरतों-बच्चों का अपहरण किया और हज़ारों की संख्या में उन्हें गुलामी करने यूरोप भेज दिया। कोलम्बस के यहां आने के एक दशक से भी कम समय में पूरे के पूरे कबीले नष्ट कर दिए गए। इस धरती की स्पेनी विजय इंसानियत की सब से बड़ी पराजयों में से एक है।
यूरोपियनों और इन मूल निवासियों की संघर्ष कथा स्पेनियों और अंग्रेजों द्वारा हत्याओं, बलात्कारों तथा इंसानों को गुलाम बनाने के विवरणों से भरी पड़ी है। सबसे पहले मई 1515 में दि लियोन नामक एक स्पेनी आक्रांता ने फ्लोरिडा का समुद्री तट खोजते हुए काल्यून जाति के लोगों को मारा, पकड़ा, बंदी बनाया। दूसरा रक्तपात हुआ एक स्पेनी कमांडर फ्रांसिस्को वास्कवेज़ कोरोनाडो द्वारा। उसने जूनी प्यूएबलो जाति के 200 से अधिक लोगों की उनके बच्चों-औरतों समेत हत्याएं की। स्पेनी राजा ने स्पेन में बैठे हुए ही यह कानून बनाया कि अमेरिका मूलनिवासियों को गुलाम बना कर रखा, खरीदा-बेचा जा सकता है। इसके खिलाफ बारतोलोम द कासस ने भरसक आवाज़ उठाई। एक पुस्तक The Destruction of Indies नाम से लिखी। इस पुस्तक का कुछ प्रभाव भी हुआ। नाम मात्र को कई कानून बनाए गए।
उत्तरी अमेरिका की धरती पर प्रभुत्व के लिए फ्रांसीसियों, स्पेनियों, डच लोगों और अंग्रेजों का आपसी संघर्ष भी एक सदी से अधिक चला। सन् 1607 में वर्जिनिया प्रांत में अंग्रेजो़ं ने जेम्सटाऊन नामक पहली बस्ती की स्थापना की। वर्जिनिया नामक एक ब्रिटिश कंपनी ने इसे स्थापित किया था। भारत का ब्रिटिश इतिहास यहां भी दोहराया जा रहा था। इस संदर्भ में एक रोमांचकारी प्रणय कथा भी मिलती है जिसमें जेम्सटाऊन के एक अग्रणी अधिकारी कैप्टन जान स्मिथ का इंडियन मुखिया पोवातन द्वारा अपहरण कर लिया गया। उसे मृत्यु-दंड से बचाया मुखिया की बेटी पोकाहांतस ने। बाद में पोकाहांतस की शादी एक अंग्रेज़ व्यापारी जान-शेल्फ से कर दी गई। इस प्रणय कथा पर दो एक फिल्में भी बनाई गई हैं। एक बिम्ब की तरह पोकाहांतस 20 बरस तक समय की डोर पर झूलती रही। यह अमेरिका के यूरोपीयन संस्कृतिकरण और स्थानांतरण की कहानी मात्र नहीं, बल्कि कबीलाई मान्यताओं की विश्वास-शैलियों की एक पूरी त्रासदी है। पोकाहांतस की समुद्री यात्रा में मृत्यु और उसके प्रतीक्षारत पिता का शोकग्रस्त अंत – कबीलाई सभ्यता पर यूरोपीयन सभ्यता का पहला बड़ा आघात था। राजा पोवातन की मृत्यु के बाद उसके कबीले ने अंग्रेजों का घोर हिंसात्मक विरोध किया। लेकिन अंग्रेजी़ हथियार और घोड़े उन पर भारी पड़े। कुछ ही समय में 8000 पोवातन लोगों की संख्या घट कर 1000 रह गई। 7000 लोगों को मारकर जंगलों और पानियों में फेंक दिया गया। लेकिन 1620 में मैसाच्यूट्स में दूसरी ही तरह की घटना घटी जिस के परिणाम अमेरिका में राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाने वाले त्योहार Thanksgiving का जन्म हुआ।
चार दिन तक सभी अमेरिकी परिवार दूर-दूर से आकर इकट्ठे होते हैं। मिल कर टर्की (एक तरह का मुर्गाब) पकाते हैं। जश्न से भरा यह त्योहार मूलनिवासियों और यूरोपियनों के आपसी आदान-प्रदान की अकेली मिसाल है। मूलनिवासियों की सहृदयता और करुणा की कथा इस त्योहार का आधार है। सन् 1620 में एक जहाज़, 102 तीर्थ यात्रियों (Pilgrims) के साथ मैसाच्यूट्स प्राँत में केप कॉड की टिप पर आ लगा। बर्फीले तूफानों में आधे यात्री मारे गए। अगले वर्ष तक किसी तरह पेड़ इत्यादि काट कर उन्होंने घर खड़े किए। लेकिन खाने के लिए समुद्री आहार के अतिरिक्त उन के पास कुछ नहीं था। बसंत 1621 में एक दिन सेमोसेत नामक एक मूल अमेरिकी ने आकर अंग्रेजी भाषा में इनका अभिवादन किया। कुछ वर्ष पहले सेमोसेत को स्पेनियों और फिर अंग्रेजों ने बंदी बना लिया था। वहाँ उसने अंग्रेजी सीख ली थी। एक दिन सेमोसेत ने इन नए अमरीकियों को अपने कबीले के राजा ”मैसोसोएत” से मिलवाया। मूलनिवासियों ने इन अंग्रेजो़ं को भूख और ठण्ड से मरने से बचाया। इनके मकान खड़े किए, इन्हें मक्का इत्यादि दिया। इनके साथ शांतिपूर्वक रहने की सन्धि की। नवम्बर की एक शाम दोनों समुदायों ने मिलकर एक विशाल भोज का आयोजन किया। तीन दिन और तीन रात जश्न मनाकर यूरोपियनों ने मूलनिवासियों का धन्यवाद किया। हर वर्ष 21 नवम्बर को यह त्योहार सारे देश में मनाया जाता है।
छः सदियों तक फैले निर्मम सम्बन्धों के विस्तृत आकाश पर बस यही सुनहरी लकीर है। 1661 में राजा मैसोसोएत का देहांत होने पर उसका बेटा मैटाकोम (जिसे अंग्रेज राजा फिलिप बुलाते थे) कबीले का मुखिया बना। तब तक बहुत कुछ बदल चुका था। एक लाख से ज्यादा अंग्रेज इस इलाके में बस चुके थे, जमीनें हथिया ली गई थीं। राजा मैटाकोम (फिलिप) ने मुखिया बनने पर कहा था, ”हमारे पूर्वजों की धरती का कुछ भी शेष नहीं बचा है। एक दिन हमें ऐसा न कहना पड़े कि हमारी कोई धरती नहीं है, ऐसा दिन न देखने का मैं दृढ़ निश्चय करता हूँ।” उस ने आसपास के सभी कबीलों में एकता का बिगुल बजाया, उन्हें घूम-घूम कर एकता के सूत्र में बांधा। एक सामूहिक कबीलाई युद्घ नृत्य का आयोजन किया जो कई दिन तक चला। अंग्रेजो़ं ने इस चेतावनी को समझ लिया। उनकी बस्तियों पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजो़ं की बन्दूकों और घोड़ों के आगे मूलनिवासियों के आदिम हथियार कुछ नहीं कर पाए। भयंकर युद्घ और रक्तपात के बाद राजा मैटाकोम और उसकी पत्नी-बेटे को बंदी बना लिया गया। पत्नी और बेटे को तो गुलाम बना कर बरमूडा के जंगलों में नीग्रो गुलामों के साथ काम करने भेज दिया गया। राजा मैटाकोम का सिर काट कर एक सार्वजनिक स्थान पर 20 साल तक लटका रख दिया गया। आज उस वीभत्स स्मृति को पोंछता हुआ एक धुला-पुंछा राजा मैटाकोम का बुत उस स्थान पर खड़ा है जहाँ से अंग्रेज़ तीर्थ यात्री (Pilgrims) पहली बार जहाज से उतरे थे और जिस धरती पर मैटाकोम के पिता राजा मैसोसोएत ने अंग्रेजों को अनन्त जीवनदान दिया था।
पंद्रहवीं सदी के उत्तरी अमेरिका में (यू.एस.ए.) लगभग एक करोड़ मूलनिवासी रहते थे। इन के 500 राष्ट्र एक दूसरे से काफी दूर-दूर सारे महाद्घीप पर फैले हुए थे। पूर्व में मैसाच्यूट्स, न्यूयार्क, न्यू इंगलैण्ड – पश्चिम में कैलिफोर्निया – दक्षिण में ज्योर्जिया-फ्लोरिडा और उत्तर में मिनिसोटा-कैनेडा के सीमान्त प्रदेश तक इन जन-राष्ट्रों के आवास-स्थल थे। समुद्री तट, नदियों द्वारा सिंचित हरित घाटियां, पर्वत-श्रृंखलाएं और मध्य में विस्तृत मैदान इस सारे क्षेत्र को प्रकृति के वरदान के रूप में प्रस्तुत करते थे। मुख्यः रूप से आखेट पर आधारित ये राष्ट्र कहीं कहीं खेतीबाड़ी भी करते थे। वृत्ताकार बस्तियों में तम्बुनुमा छोटे-छोटे घर बनाकर एक नृत्य-संगीत मय जिंदगी जीते थे। धरती सब की सांझी है – खरीदी-बेची नहीं जा सकती – प्रकृति और धरती से जन्म लेते हुए जीवन अकेले-अकेले नहीं हैं, एक अदृश्य श्रृंखला से बन्धे हुए हैं – समय के एक छोर से दूसरे छोर तक जो कुछ भी घटा है, वह सब हमारे साथ है – हमारे पूर्वज हमारे साथ हैं – प्रकृति की सभी कृतियां और उनके कार्य-कारण-सब कुछ स्वीकार्य है, कहीं कुछ विच्छेदन नहीं अनवरत अस्तित्व स्त्रोत सदा से हैं इस तरह के आदि विश्वास इन राष्ट्रों में लगभग सांझे थे। आश्चर्य होता है, हमारी अपनी पुरातन संस्कृति से इन सब की विश्वास यात्राओं की साँझी धारा देख कर।
अठारहवीं सदी तक उत्तरी अमेरिका के पूर्वी क्षेत्र में यूरोपियन लोगों की सँख्या बहुत बढ़ गई, लालच भी बढ़ता गया और शक्ति प्रयोग की लालसा भी। सोना और कीमती धातुओं के मिलने की संभावना जहाँ भी उदित होती, वहाँ इन लोगों की निर्ममता भी उदय होती, प्रहार क्षमता भी उजागर होती। तब तक कई प्राँतों का गठजोड़ करके यू.एस.ए. अपना आकार ले चुका था। 1776 में इंग्लैण्ड से इन्हें अपनी आजा़दी मिल चुकी थी। कैलिर्फोनिया मैक्सिको से लड़ कर जीता जा चुका था और फ्राँस के नैपोलियन बोनपार्ट से लुईज़ियाना का क्षेत्र कौड़ियों के भाव खरीदा जा चुका था। अफ्रीका से जहाजों में भर कर लाए गए ढेर के ढेर गुलाम इनके खेतों, कारखानों, खानों, इत्यादि में अपनी मिट्टी खराब कर रहे थे। बहुत से मूलनिवासियों को भी गुलाम बनाया जा चुका था। जहाँ आजकल Wall Street है, वहाँ गुलामों को खरीदने-बेचने की मण्डी लगती थी। इन इंसानों को खास चौराहे पर इकट्ठा कर दिया जाता था। मांसपेशियां देखकर, ठोक बजाकर, गर्व से तनकर सफेद रंग वाले इन रंग वालों को खरीदते थे। 1804 में प्रैसीडैण्ट जैक्सन ने दो अनुभवी सैलानियों लुईस और क्लार्क को मिसीसिपी के पार पश्चिम के क्षेत्र में पूर्ण अन्वेषण के लिए भेजा। मिसिसिपी के पश्चिम का क्षेत्र अभी भी मूलनिवासियों द्वारा ही प्रयोग किया जाता था। 26 मार्च 1804 को ही सभी मूलनिवासियों को मिसीसिपी के पार पश्चिम में जाकर बसने का राजसी आदेश हुआ था। इसके विरुद्घ ‘शायेन’ नामक मूल जाति ने विरोध किया। एक कबीलाई राजा तेकमसेह ने एक विशाल कबीलाई संघ की स्थापना की। कई छुटपुट लड़ाईयों के बाद तेकमसेह और उसके साथियों को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।
एक भयावह इतिहास है इस महाद्वीप पर अधिकार स्थापित करने का, मूलनिवासियों को घेर-घेर कर मार डालने का, उन के जानवरों को हजारों की संख्या में रोज़ समाप्त कर देने का, उन को एक जगह से दूसरी जगह खदेड़ देने का। नित नई संधियां इन जनजातियों के साथ अमरीकी सरकार करती थी ताकि उन्हें लगे कि सन्धियां उन का कवच हैं, सन्धियों के बाद वे सुरक्षित हैं। लेकिन वे सन्धियां रद्दी कागज के टुकड़ों जितनी भी मूल्यवान नहीं थीं। एक के बाद दूसरा जुल्म का अन्तराल मात्र थीं ये सन्धियां। सरकारी बजट में विधिवत ”इंडियन रिमूवल” के लिए धनराशि अंकित की जाती थी। सन् 1837 में सेना ने 14000 क्रीक जाति के लोगों को अपनी धरती से विस्थापित कर दिया था। 1835-1840 के बीच चार से छः करोड़ डालर खर्च किए गए थे सेमिनोल जाति को उजाड़ने पर।
धार्मिक और राजनैतिक शक्तियां एक जुट हो कर जिस तरह इस संस्कृति का निर्मूलन करने पर लगी हुईं थीं, उसके दूसरे उदाहरण कहीं-कहीं इतिहास में बिखरे हुए मिल जाते हैं। लेकिन एक विशाल भूभाग पर कब्जा करने के लिए सिर्फ लोगों को परिवर्तित करना काफी नहीं होता। उनके रीति रिवाज, विश्वास और धर्म समाप्त करने पर भी उन के शरीर तो बचे ही रहेंगे। और शरीर रहने के लिए जगह चाहिए। बढ़ती हुई आबादियों को जगह की बड़ी किल्लत हो जाती है। शुरू-शुरू में इस महाद्वीप के उपनिवेशकों ने यहाँ के मूलनिवासियों को अपने जैसा बनाने की सोची। ईसाई पादरी अपने पूरे धार्मिक आक्रोश और आक्रमकता से इस काम में लग गये। पूरी बस्तियों को बच्चों से खाली कर दिया गया। उन के माता पिता से अलग रख कर उन्हें ईसाई धर्म में दीक्षित किया गया। भाषा पर प्रतिबंध लगाया गया। अपनी भाषा का प्रयोग करने वाले बच्चों को कड़ा दण्ड दिया जाता था। दूसरी तरफ उनके माता पिता का भी दूसरी तरह से सभ्यीकरण किया गया। तम्बुओं से निकाल कर छतों वाले घरों में रहना सिखाया गया। विधिवत यूरोपियन ढंग के कपड़े पहनना, खाना पीना आदि भी सिखाया गया। विशेष कर पांच जन जातियों का जो दक्षिणपूर्वी हिस्सों में रहती थी, सभ्यीकरण किया गया। यही बात दूसरे स्थलों पर भी की जा सकती थी लेकिन बड़ी जल्दी ही स्थान का अभाव हो गया। बहुत अधिक संख्या में यूरोप से लोग यहाँ आने लग गये। इसलिए सभ्यीकरण की नीति-रीति को बदलना जरूरी हो गया। जगह खाली करवाना जरूरी हो गया। शरीरों को उस धरती से हटाना जरूरी हो गया। एक राजाज्ञा से इन सभ्य बनायी गई 5 जन जातियों को दक्षिणपूर्वी क्षेत्र से उजाड़ कर पश्चिम में Oklahoma जाकर दोबारा से अपना जीवन शुरू करने को कहा गया। जो वृद्घ अपने अन्तिम चरण पर थे, उन्हें भी दोबारा जिन्दगी शुरू करनी पड़ी। यह मात्र आदेश नहीं था। सैनिकों द्वारा इस आदेश का पालन कराया गया। कितने लोगों ने बच कर दोबारा जीवन शुरू किया, इस के आंकड़े भी जरूर कहीं सुरक्षित होंगे। दूसरे स्थानों पर भी, मिशनरी लोग इन्हें परिवर्तित करने में लगे हुए थे। धर्म परिवर्तन के इलावा दोबारा जीवन शुरू कराने की मुहिम में उन का दायित्व सरकारी अधिकारियों से कम नहीं था। स्थानान्तरण के इस महाअभियान में इन का अपना तर्क था। इन्हें एक Promised Land देना चाहते थे – उन की अपनी दैविक धरती जहां वे अपने बदले हुए विश्वासों के साथ सुरक्षित रह सकें, जहां उनके आस पास गोरे लोगों की बस्तियां न हों। ऐसे प्रलोभन नये मिले हुए विश्वासों की तरह ही चमकदार थे। लेकिन जातियों की प्राचीन कुबुद्घि इन्हें स्वीकार नहीं कर पा रही थी। राष्ट्रपति एन्ड्रयू जैकसन (Andrew Jackson) अमेरिका को सुरक्षित करने में लगे हुए थे। वे भी धार्मिक लोगों का ही तर्क प्रयोग कर रहे थे। अपनी पुरानी धरती छोड़ कर नई धरती पर ये लोग सुरक्षित और स्वायत हो कर रह सकेंगे। यहां इन्हें खतरा है। इन्हें मार दिया जायेगा।
मूल निवासियों की संघर्ष गाथा का सबसे क्रूर अध्याय है Georgia प्रान्त में बसे हुए लोगों को वहां से निकल कर पश्चिम की तरफ Oklahoma में जा कर बस जाने का आदेश। सर्पिल लकीरों जैसी पगड़न्डियों पर 1500 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करना अपनी औरतों, वृद्घों और बच्चों समेत। यह एक ऐसी स्थिति थी जिस को स्वीकार करना आसान नहीं था। चाहे कोई कितना भी जंगली क्यों न हो यातना सहन करने की सीमा मन और शरीर दोनों की होती है। इस निश्चय के खिलाफ Georgia के न्यायालय में याचिका दी गई। न्यायाधीश ने मूलनिवासियों के पक्ष में निर्णय दिया। क्रोधित होकर राष्ट्रपति Andrew Jackson ने अपनी विशेष शक्ति का प्रयोग करते हुए इस निर्णय की अवमानना करते हुए मूल निवासियों को एक निश्चित अवधि में वहां से निकल जाने का आदेश दिया। उन्हें उखाड़ने की जिम्मेदारी भी उसी न्यायाधीश को दी गई जिस ने उन के पक्ष में फैसला दिया था। यह सत्ता कान्ड हुआ था 1835-36 में। उस के दस वर्ष पहले ही इस की भूमिका बना दी गई थी राष्ट्रपति जान क्वीन्सी एडम्स (John Quincy Adams) द्वारा। 1825-26 के दौरान कई नकाबपोश सन्धियां एडम्स ने उन मूलनिवासियों के रातों-रात खड़े किए प्रतिनिधियों के साथ की थीं। डकोटा, ओसाजी, कान्सा, चिपेवा, साक, विनिबेगो, मियामी, पोतावातोमिस कबीलों के शराब पिला कर धुत किये गये फर्जी प्रतिनिधियों के साथ से ये सन्धियां लिखी गईं। लेकिन शायेन और ओहायो कबीले के लोग वहीं बने रहे। वे इन दूसरे लोगों को धीरे-धीरे अपनी धरती छोड़ कर जाते हुए देखते रहे। सब जगह नकली सरदार (Chief) गढ़े जा रहे थे। उन्हें लम्बी तलवारें देकर सम्मानित और सुसज्जित किया जाता था और उन से सन्धि पत्रों पर हस्ताक्षर करा लिये जाते थे। और इन्हें चलता कर दिया जाता था। उन्हीं की एक मनस्थिति है इन पंक्तियों में –
पक्षी अपनी गर्दन तेजी से घुमा कर देखते हैं
अपनी उड़ान-यात्रा की तरफ मुड़ कर देखते हैं
यह सूर्य की धरती और दैवी शक्तियां उन्हें कुछ कह रही हैं
उन के सन्देश लिये ये तेजी़ से उड़े जा रहे हैं
भयग्रस्त आगे अपने प्रदेश को उड़ते हुए
वे संसार के अन्तिम छोर को दृष्टि में अंकित करते हैं
आंखों में रोशनी चुभ रही है लेकिन खुली हुई चोंचें
अपना नाश सूंघ रही हैं
16000 चिरोकी लोगों को सेना ने घेर कर कैम्पों में बन्दी बना लिया। सारी गरमी वहां रखकर, उन्हें 1500 किलोमीटर की यात्रा पर रवाना कर दिया गया। लकड़ी की खच्चर गाड़ियों में उन का ज़रूरी सामान लाद दिया गया। लगभग 8000 हज़ार लोग इस यात्रा में मारे गये थे। कुछ वर्षों बाद 1841 में 48 खच्चर गाडि़यां नर कंकालों के साथ प्रसिद्घ Oregon Trail के रास्ते सैकरामेन्टो पहुंची। इस यात्रा के विवरणों से किताबें भरी पड़ी हैं। उन्हें किसी भी संक्षिप्तता में बयान करना उस यातना का अपमान करना होगा।
Trail of Tears के नाम से कुख्यात इस त्रासदी के बाद इन मूलनिवासियों में किसी भी प्रकार का धैर्य नहीं बचा था। इस के बाद का इतिहास सिर्फ अविश्वास घातक अवसरों की तलाश और सक्षिप्त युद्घों का इतिहास बन कर रह कर रह गया। दसियों ऐसी लड़ाईयां हैं, जिन में कुछ ही घंटों के भीतर सैंकड़ों हजा़रों लोग मार दिये जाते थे। पहाड़ों में घेर कर, ठंडी झीलों में फेंक कर, जंगलों में दौड़ा कर यानी तरह तरह से, सैनिक इन की हत्याएं करते थे, सोने के लालच में जमीनें खाली करवाते थे। कुछ नाम जो अपनी वीरता के लिए प्रसिद्घ हुए उनमें सिटिंग बुल, लिटिल क्रो, क्रेजी़ होर्स, चीफ जोसेफ, रेड क्लाउड इत्यादि आज भी कहानियों, किस्सों की जान हैं।
अंततः 19 वीं सदी में Reservations (आरक्षित स्थान) पर ही इन मूल निवासियों ने शरण लेनी शुरू की। इन के कबीले और उनके सदस्यों को सीमित स्वायत्तता प्रदान की गई। वे अपने आरक्षित भूमियों पर रह कर आपकी खेती बाड़ी व्यापार इत्यादि कर सकते हैं। धीरे-धीरे इन को अपने प्रशासन और अपने कानून बनाने का अधिकार भी सरकार ने दिया। Bureau of Indian Affairs (BIA) एक सरकारी संस्थान है जो इन के हितों की रक्षा करता है। इन की भाषाओं संस्कृतियों, रस्मों-रिवाजो़ं, संगीत नृत्य को आज फलने फूलने का अवसर दिया जा रहा है। शिक्षा संस्थानों में इन की भागीदारी के कानून हैं। मुख्यधारा में शामिल करने के सारे प्रयास किये जा रहे हैं। आज अपने आपको आरक्षित भूमियों पर रहने के अतिरिक्त ये साधारण नागरिक के रूप में जहां चाहे रह सकते हैं, काम कर सकते हैं अमरीकी सेना का हिस्सा हो कर इन्होंने हजा़रों की संख्या में दोनों विश्व युद्घों में भाग लिया। इस सब के उपरान्त भी इन की अन्तरात्मा का वह खाली हिस्सा अभी तक खाली ही है। आक्रोश इन के स्वभाव में शामिल हो गया है। अपनी पूर्वजों की सारी धरती छिन जाने का दुख और सदियों तक अपमानित हो कर पशुओं की तरह एक जगह से दूसरी जगह खदेड़े जाने की स्थिति को आज का युवा मानस भी भुला नहीं पा रहा है हालांकि उन्होंने अपनी आंखों से कुछ देखा नहीं, शरीर से कुछ भोगा नहीं। अपने एक सर्वमान्य मुखिया चीफ सियेटल (1686) के शद्ब अनवरत उन की स्मृति का हिस्सा बने हुए हैं –
‘दिन और रात एक साथ नहीं रह सकते। काली त्वचा के लोग हमेशा ही गोरे लोगों की समीपता से दूर रहे हैं जैसे सुबह की धुंध सूर्य के छूने से भाग जाती है। फिर भी हम आप का प्रस्ताव ही ठीक मानने को विवश हैं और मेरे लोग अपनी धरती छोड़ कर आप के दिये हुए आरक्षित स्थानों पर चले जाएंगे। फिर हम अपनी अपनी शान्ति में अलग अलग रह सकेंगे। एक गोरे अधिकारी की आवाज़ मुझ तक पहुंच रही है। और ऐसा लगता है यह प्रकृति की आवाज़ है जो गहन अन्धकार से उठ कर मेरे लोगों को सुनाई दे रही है। हम बाकी दिन कैसे गुजारेंगे, इस का कोई अर्थ नहीं है। हमारी रात भरपूर काली रात होने का आश्वासन हमें दे रही है। क्षितिज पर एक भी तारा नहीं है। उदास हवायें दूर कहीं विलाप कर रही हैं। हमारे कदमों के ठीक पीछे हमारा दुर्भाग्य चल रहा है। एक जख्मी हिरण अपने पीछे आते हुए शिकारी की आवाज सुन कर अपने आप का अपनी पूर्ण मृत्यु के लिए तैयार कर रहा है।’
कृष्ण किशोर