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ग़ज़ल

ग़ज़ल

करना नहीं है रुसवा हमको सफर किसी का
देखेंगे उम्र भर हम रस्ता उस आदमी का
बरबादियों का आलम हंस कर गुजार देंगे
देखेंगे लाजमान हम अंजाम जिंदगी का
हम सर के बर चलेंगे शोलों की सरजमीं पर
हम वो नहीं जो बदले रुख आग की नदी का
बदहालियों की अजमत कायम रहे तो जानें
चारा करेंगे दुश्मन इस दिल की बेहतरी का
हर तौर चांद रोए हर सिम्त रात तड़पे
छूकर रहेंगे आखिर हम जिस्म चांदनी का
दोनों जहां की रौनक बुझने लगी है राही
आंखों में चुभ गया है एक तीर रोशनी का

                                                                                                        कृष्ण किशोर

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