हर पता कोई चेहरा कोई नाम हुआ है
देखा है कि जंगल में भी इक शहर बसा है
इस बार तुझसे मिलकर ये महसूस हुआ है
जैसे किसी अंधे ने मुझे लूट लिया है
क्या जिक्रे वफ़ा जिक्रे-तलब राहे वफ़ा में
जितना भी सफर तय हुआ जंगल में हुआ है
दीवार पर इक अधमिटे से नाम की तरह
वो अजनबी सा जिंदगी भर साथ रहा है
इस बार तेरे कुर्ब का हासिल ये रहा है
दिल तुझ से बिछड़ने के लिए मान गया है
उस घर में किसी शख्स ने फिर सांस तक न ली
वो जाते हुए ऐसी हवा बांध गया है
उसकी ही तरह मैं भी तो शब भर के लिए था
सीनाए फ़लक छोड़कर जो चल भी दिया है।