alsoreadकविता

ग़ज़ल कृष्ण किशोर

ग़ज़ल कृष्ण किशोर

हर पता कोई चेहरा कोई नाम हुआ है

देखा है कि जंगल में भी इक शहर बसा है

इस बार तुझसे मिलकर ये महसूस हुआ है

जैसे किसी अंधे ने मुझे लूट लिया है

क्या जिक्रे वफ़ा जिक्रे-तलब राहे वफ़ा में  

जितना भी सफर तय हुआ जंगल में हुआ है

दीवार पर इक अधमिटे से नाम की तरह

वो अजनबी सा जिंदगी भर साथ रहा है

इस बार तेरे कुर्ब का हासिल ये रहा है

दिल तुझ से बिछड़ने के लिए मान गया है

उस घर में किसी शख्स ने फिर सांस तक न ली

वो जाते हुए ऐसी हवा बांध गया है

उसकी ही तरह मैं भी तो शब भर के लिए था

सीनाए फ़लक छोड़कर जो चल भी दिया है।

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