मरने के बाद देश के लिए कुछ किया ही नहीं,
यहां आसमान में बैठे गठिया गया हूं।
चल कर देखता हूं- देश किधर जा रहा है।
गांधी ने देखा-
डूबते सूरज की दिशा में भागते लोगों को ।
हंसे ,अपनी उसी हल्के विनोद की मुद्रा में
जिसे पिछली सदी के लोग और आकाशवासी खूब जानते हैं।
कुछ सोचकर बोले ,एक जुलूस निकालना होगा
डूबते सूरज के पक्ष में।
जुलूस के नाम पर भीड़ जुट गई ,
उन्हें शुभ लाभ से जोड़कर देखने वालों की।
गांधी ने कहा- सबसे आगे ले चलेंगे वे
जो सोचते हुए, हंसते और हंसते हुए सोचते हैं
हंसने और सोचने की इलावा न किसी बात पर हंसते हैं ,
न कुछ और सोचते हैं ।
दूसरी पंक्ति में चलेंगे वे-जो चींटी को छोटी भैंस
और भैंस को बड़ी चींटी सा देखते हैं ।
तीसरी पंक्ति में चलेंगे वे- जो दूसरों की तरफ जाती गोली
और अपनी तरफ की गाली को एक जैसा सुनते हैं
किस पंक्ति में जाना है , आत्मान्वेषी सब जानते ही थे।
दूधों धुले पूतों फले विधि विधायक
आसमान में फसल उगाते- गगन विहारी
बुद्धिचारी, सबके स्वामी आत्मोत्थानी
अस्त्र शस्त्र सेवी जन रक्षक
मरघट मरघट स्वास्थ्य सुधारक कष्ट निवारक
चर्रमर्र अखबारी विद्वत जन
इन सबके हमराज़ शराबी और जुआरी
शीश नवाए सीना ताने सांस रोककर
लघुता और प्रभुता बिसारते
दर्शन मुद्रा में खड़े हो गए ऐसे
किसी पर बैठे हो जैसे।
फिर भी कुछ फिर बाकी थी अभी।
बापू ने भाव विव्हल होकर पूछा
अपने स्वभाव के विपरीत, तुम कौन?
हम वही ,जो देश का सोना लोहा और तांबा खाकर
बड़ी मुश्किल से गुजर बसर करते हैं।
गाली गलौज करने वाले
हमें व्यापारी कह कर ललकारते हैं।
आप ही कहिए ,हम क्या चोर उचक्के दिखते हैं?
हमें तुम्हारी कुटिल कठिनाई समझता हूं,
तुम्हारे ही हक में यह जुलूस है
लेकिन जल्दी चलना होगा- सारा सफर अंधेरे की ओर है।
अब मेरी निर्जीव आंखें
तुम्हारी ही तरह सूर्योदय सहने की आदी नहीं रहीं।
जुलूस चलने को था कि आ गए कुछ
कंधों पर कुदाली, फावड़ा लिए अधनंग।
गांधी बोले -देखते नहीं ,जुलूस पश्चिम को जा रहा है
और फिर तुमने किया ही क्या है
पत्थर धरती तोड़ने के इलावा।
तुम्हारे बीवी बच्चे लोगों में गंदे विचार पैदा करते हैं।
अभी जाओ, फिर आना अगली बार
जब मैं जुलूस निकालने नहीं, अनशन करने आऊंगा।
तुम्हारे भूखे रहने की आदत मुझे शक्ति देगी
और फिर मेरे आजू-बाजू बने रहना
इधर उधर मत होना।
मैं दूसरी बार छाती पर गोली खाकर नहीं,
भूख से मरना चाहता हूं।
बापू से प्यार भरी फटकार सुनकर
वे एक नई उजास से भरकर तितर-बितर हो गए
कुछ गांधीवादी स्वर्ण अवसर देखकर बोले
बापू, हम भी अगली पंक्ति में चलें, आपके पीछे?
नहीं, तुम यही प्रतीक्षा करो
जुलूस के बाद तुम्हें मेरे साथ ऊपर चलना होगा ।
मैं वहां बहुत अकेला पड़ गया हूं।
कृष्ण किशोर