alsoreadकविता

नयन भर कर देखता हूं मैं किसी की ओर-कृष्ण किशोर

नयन भर कर देखता हूं मैं किसी की ओर-कृष्ण किशोर

नयन भर कर देखता हूं मैं किसी की ओर

और कोई कह रहा है-

सुन मुसाफिर ,मैं तुझे पहचानता तो हूं

मगर इतना नहीं कि

दर्द की पूंजी लुटा दूं सब तुम्हारे द्वार

और निर्धन आत्मा लेकर जगाऊं

अलख उसके गांव

जो मेरे लहू की प्यास लेकर जी रहा है

और जिसकी तृप्ति

मेरा धर्म ,मेरा ध्येय

मेरी वंदना है

मेरे कथानक का यही सारांश-

नयन भर कर देखता हूं

मैं किसी की ओर

और कोई कह रहा है

सुन मुसाफिर…

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