alsoreadकविता

साकार झूठ–कृष्ण किशोर

साकार झूठ–कृष्ण किशोर

 

मुझको उल्लू और कोयल की आवाज़ों में कोई फर्क नहीं लगता है

मेरे कानों को सूंघ गया है सांप।

मुझको चूहा और हंस एक से सुंदर

 या भद्दे लगते हैं

मेरी आंखों को लकुआ मार गया है।

मुझे किसी के होठों का रस

या होटल का खाना, एक मजा देता है

या फिर बेमज़ा है एक सा।

मेरी जिह्वा को नजर लग गई है।

और यह सब कुछ हुआ तुम्हारे कारण।।

तुम मेरी हर अनुभव करने की शक्ति को

बर्फ कर गई हो,

मेरी अनुभूति के छिद्रों में

 मोम भर गई हो।

मेरे जीवन का सच तुम थी

सो चली गईं या मैंने त्याग दिया

मैं अब एक साकार झूठ हूं ,भटक रहा हूं।

मुझको उल्लू और कोयल की

 आवाज़ों में  कोई फ़र्क नहीं लगता है।

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