ग़ज़ल

 

मिट्टी के ज़र्रों को अपना लहू पिला कर देख

धरती से  आँखें  टकरा कर अश्क बहा कर देख.

जीने वालों की उम्मीदों पर जीना अंगार

मर जाने वालों को दिल की बात बता कर देख.

भाग दौड़ में आगे रहने वालों के सरताज

गिर पड़ कर चलने वालों से होड़ लगा कर देख.

हो सकता है आखों से कुछ और बात बन जाए

मुझे देखना है तो साथी दिया बुझा कर देख.

शायद इनमें तुझे कोई दो चार कोस ले जाए

हर रुखसत होने वाले से हाथ मिला कर देख.

सुबह हो गयी है मैं भी हूँ अब चलने को तेयार

रात गये घर आने वाले आँख मिला कर देख.

 

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