alsoreadकविता

 

एक मनस्थिति

 

 यह ताबंई रंग का चांद कब ऊपर उठेगा

कब खिलेगा पूर्ण गोलाकार
चांदी का कमल आकाश में ।
कब मुझे ऐसा लगेगा मैं सुरक्षित हूं
कि अब कोई नहीं आवाज देगा मुझे कहीं से भी ।
और मैं दूर तक आकाश  जैसा फैल जाऊंगा रिक्त हो कर ,
बिखर जाऊंगा अपने ही चारों तरफ
या कहीं भी ।
और उस आकार को धारण करूंगा
जो मेरा है ।
उस आकार को धारण करूंगा

जो मेरा है

जिसे पहचानता हूं सिर्फ  मैं ही ।
आकार  -जिसमें पहुंचकर मैं

सारी उम्र अपनी एक क्षण में लांघ जाता हूं ।
एक क्षण में जिंदगी
आकर्षक या भोंडे चित्र जैसी जिंदगी सिमटकर
एक नन्हे बिंदु जैसी तैर जाती है।
कुछ नहीं रहता -न तुम,  न मैं,
न कोई और
जिनकी वजह से मैं जिंदगी को
जिस्म के आकार जैसा मानने को विवश हूँ।

उस समय तक जब तक
तांबई रंग का चांद
क्षितिज से ऊपर नहीं उठता
पूर्ण गोलाकार चांदी का कमल
आकाश में पूरी तरह नहीं खिलता
यूं ही खुली छत पर बैठ कर
बतियाता रहूंगा
मै किसी से भी ।
या सड़कें नापता फिरता रहूंगा
जिंदगी के मोड़ गिनता ।

कृष्ण किशोर

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