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आंसुओं का सिलसिला-कृष्ण किशोर

आंसुओं का सिलसिला-कृष्ण किशोर

 

 


 
 

आंसुओं का सिलसिला
कैसे टूट जाएगा
दर्द की गली से कौन
नींद ढूंढ लाएगा।

चांद पुरअसर नहीं
फूल कारगर नहीं
और उस रफ़ीक का
इस तरफ़ गुज़र नहीं।

इस तरह की रात में
ग़म की कायनात में
ये ख़याल का फकीर
जिस तरफ़ भी जाएगा
धूल फांक आएगा।

ग़म गुसार महफिलें
दिल नवाज़ मंज़िलें
इस तरफ ना आएंगी
और मैं उठूं भी तो
उस तरफ बढूं भी तो
सांस टूट जाएगी।

कीजिए यही कि अब
देखिए तमाम शब
राह उस हबीब की
दर्द के नसीब की।

और आखिरी पहर
जबकि चांदनी के पर
गिर पड़ेंगे टूट कर
रात के मज़ार पर

उस घड़ी के आर पार
बेखुदी के तार तार
गा उठेंगे बार-बार
ज़मज़मा विसाल का
मौत के जमाल का।

आंसुओं का सिलसिला
हुस्ने बेमिसाल को,
मौत के जमाल को
छू के टूट जायेगा
दर्द की गली से भी
नींद ढूंढ लाएगा ।

 

 

 

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