बच्चे की ज़िद है
माँ, मुझे चाहिए वही खिलौना
जिस की आँख के नीचे था एक काला धब्बा
जिस की नाक का पॉलिश थोड़ा उतर गया था
जिस के दाएँ हाथ की उंगली
कपड़े पहनते हुए एक दिन टूट गयी थी
जिस के बालों की उखड़ी लट
मेरे बस्ते की एक जेब में पड़ी हुई है
नया खिलौना, जो माँ तू ले कर आई है
कितना सुंदर है- आँखें झप झप करती हैं
हंसता भी है ,
कपड़े भी कितने सुंदर हैं- मखमल मखमल
बाल भी कैसे -भूरे भूरे रेशम रेशम
इतना चिकना चेहरा, जैसे टीवी वाले बबलू का है
हाथ बढ़ा कर आगे चलने को कहता है
लेकिन मां, मुझे चाहिए वही खिलौना
मुझे ले दिया था जो तूने
देवी के मेले में सारी शाम घूम कर
बस मैं था , मेला था और तू थी
उससे मैंने अपनी सारी बातें की हैं
मेरी दादी माँ और नानी माँ अब उसकी भी है
मॅंगतू की छोटी हट्टी पर क्या बिकता है
उसे पता है
उस की खुश्बू है मेरे सारे कपड़ों में
और मेरे मन में है उसके प्यार की खुशबू
लगता है तूने जन्मा है उसको
मैने देखा है सिर्फ़ तुझे या उसको घर में
मां, तुम वापस कर आओ ये नया खिलौना
कितना सुंदर है
लेकिन इसे पकड़ कर
अपने को अपने जैसा नहीं समझता
तू भी इसे गोद में ले कर
मेरी मां जैसी तो नहीं दीखती
कृष्ण किशोर
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