मार्केस की की एक कहानी है ‘बैल्थाज़ार की शानदार सांझ’ । बैल्थाज़ार ने अपनी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत पिंजरा बनाया, एक अमीर आदमी के बेटे के लिए। भीड़ लग गई पिंजरा देखने वालों की। एक डाक्टर ने देखा तो बोला – पिंजरा मुझे बेच दो, पैसे जितने मर्जी लेना। बैल्थाज़ार अमीर आदमी के बच्चे के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहता। बैल्थाज़ार की पत्नी खूब सारे पैसे मिलने की उम्मीद से खुश है। पिंजरा उठाए वह अमीर आदमी के घर जाता है। गर्व से पिंजरा डाइनिंग टेबल पर रखता है। अमीर आदमी बाथरूम से बाहर आता है – ‘किस ने कहा ये पिंजरा बनाने को।”आप के बेटे ने’, कारीगर बोला। बेटे को बुलाया गया। एक थप्पड़ की मार से बेटा बिलखता हुआ फर्श पर गिर पड़ा, पिंजरा लेने की ज़िद में। अमीर आदमी बैल्थाज़ार को डांटता है – ‘पिंजरा लेकर दफ़ा क्यों नहीं होता। कुत्ते का पिल्ला।’ बैल्थाजार बच्चे को पिंजरा थमाते हुए कहता है – ”मैंने इसी के लिए यह बनाया है। पैसे मुझे नहीं चाहिए। एक उपहार की तरह रख लो।’ पिंजरा रख कर बिना कुछ लिए वह बाहर आया। बाहर खड़े लोगों ने पूछा – ‘पचास पीसो मिले?” वह कहता है – पचास नहीं साठ। सब उस पर गर्व कर उठे, कितना महत्वपूर्ण कलाकार है। शाम हो चुकी थी। बैल्थाज़ार सीधा शराब खाने गया। वह पहली बार शराब पी रहा था। उसने खुद भी पी, बाकी सब को भी पिलाई। दिन छिपने तक वह पूरे नशे में था। बोलता जा रहा था – ”हज़ार पिंजरे बनाऊंगा, साठ का एक। फिर एक लाख पिंजरे बनाऊंगा। साठ लाख पीसो। हमें इन अमीर लोगों के लिए बहुत सी चीजें – बनानी हैं, इन सब के मरने के पहले। ये सब बहुत बीमार हैं और मरने ही वाले हैं।‘‘वह नशे में धुत था, पगलाया हुआ। दो घण्टे तक वह संगीत सुनता रहा, पैसे फेंकता रहा। सब लोग उसकी खुशकिस्मती की दाद देते रहे। खाना खाने के समय तक सब जा चुके थे, उसे अकेला छोड़ कर। उसकी पत्नी आधी रात तक इंतज़ार करती रही। बैल्थाज़ार वहीं पड़ा सपने लेता रहा – एक खुले नृत्य मंच के, एक बड़े हाल के, सुंदर पक्षियों के। उसने महसूस किया कि वह बहुत थक गया है, एक भी कदम और नहीं उठा सकता। उसका मन किया – एक ही बिस्तर पर दो सुन्दर औरतों के साथ सोने के लिए। वह अब खाली हाथ, खाली जेब था। अपनी घड़ी तक वह दे चुका था, उधार के लिए। अगली सुबह, वह गली में पसरा पड़ा था। उसे लगा था जैसे कोई उसके जूते उतार कर ले जा रहा था लेकिन वह अपने जीवन के सब से सुन्दर सपने को बर्बाद नहीं करना चाहता था।
जीवन के इस वीभत्स्य का सूत्र बाहर की बदहवासी और भीतर की जगमग दुनिया में खुलता है, उस यथार्थ को देखने के लिए जो इन बदहवास स्थितियों से सिर्फ दो कदम दूर खड़ा है।