जहन के अर्श पे इक चांद उगा लो यारो
गुल करो शम्म गमे दोस्त जगा लो यारो
आमदे सहर की ताज़ीम में आहिस्ता से
सांस को रोक कर दो अश्क बहा लो यारो
चल दिया हो न कहीं सुबह को जाने वाला
आखिरी वक्त उसे दिल से लगा लो यारो
चार दिन और रहेगी ये ज़मानासाजी
चार दिन और मेरा दर्द बंटा लो यारो
हमसफ़र कोई नहीं है तो मेरी बात सुनो
तुम कोई राह पड़ा दर्द उठा लो यारो
जहन के अर्श पे इक चांद उगा लो यारो
गुल करो शम्म गमे दोस्त जगा लो यारो