प्रकृति जन्य

प्रकृति जन्य

मुक्त हो कर अकर्मण्य खड़ा हूँ।
एक पर्वत शिखा पर-
जहाँ कोई पगडंडी
किसी आकांक्षा की ओर नहीं ले जाती।
मेरे पाँवों के नीचे है
धुनी हुई चाँदी सी बर्फ़
और चारों तरफ़
हल्के नीले फूल के तरह खिला हुआ आकाश।
बाँहों में बाँधने के लिए
अपने वक्ष के सिवाय कुछ नहीं।
जीवन की सांझ जैसी हल्की
हवा की परतें
किसी देवदार का
एक पत्ता भी नहीं हिलाती
मन की तरह शांत
सिर पर बर्फ लादे खड़े हैं
उदेश्यहीन, विशाल पेड़ और पत्थर।

पूरा पढ़े
N/A