लोकतंत्र

सपना- जो बिखर गया


आज कहीं भी सारे विश्व में लोकतंत्र की बात करते हुए, आंखें बंद हो जाती हैं सिर झुक जाता है। इंसान के सबसे बड़े सपने और प्रयास के, इस तरह बिखर जाने से ऐसा लगता है जैसे, दिन बहुत छोटे हो गए हैं, रातें बहुत लंबी। इस के अंधेरे में – जो कुछ हो सकता है, बस वही हो रहा है। निर्मम होकर ही कोई सत्य जस का तस कहा जा सकता है। सो आज का सच यही है कि लोकतंत्र दुनिया में कहीं भी दूध का धोया नहीं रहा।

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