ग़ज़ल
कोई तो देख कर कह दे कि तू वही सा है
कोई तो आँख हो नम देखकर तेरा दामन
जब तेरे शोख झरोखों पे नज़र उठती है
उठने लगता है धुआं दिल की स्याह बस्ती से
और पसे पर्दाए-तस्वीरे जफा उस वक्त
कांप उठाती है हवा तेरी सितम दस्ती से
लोकतन्त्र केवल एक राजनीतिक प्रबन्धन नहीं है। जब तक हमारी दैनिक व्यावहारिक सोच का लोकतांत्रिक आधार पैदा नहीं होता, तब तक हमारी राजनीति का आधार भी लोकतांत्रिक नहीं हो सकता। लोकतन्त्र की अवधारणा हमारी मानसिकता और सामाजिक मूल्यों में निहित अधिक है। इन दोनों की अनुपस्थिति में लोकतन्त्र केवल एक संवैधानिक प्रस्तुति और औपचारिकता बन कर रह जाता है। व्यावहारिक स्तर पर उसे अपनाने और लागू करने के लिए जोर जबरदस्ती का सहारा लेना पड़ता है।
...काफ़्का के The Trial (1925) से कामू के The Stranger (1942) तक की यात्रा एक कोहरे में दफ़्न घाटियों में यात्रा जैसी है। आंखों के सामने का कोहरा छंटता नहीं और चलना ज़रूरी है। यात्रा ज़रूरी है। ठीक ग़लत कुछ नहीं, बस ज़रूरी।..
..On the pages of this website, our visitors will wander in its hills and valleys of lofty poetry, soak themselves in intellectual and thoughtful essays -analyzing and synthesizing different aspects of issues that engage us now and always. These are open thoughts without reaching stone hard conclusions..
....पेरू के एक राजनीतिज्ञ/अर्थशास्त्री अपने नये तर्क के साथ प्रस्तुत हुए थे। मेक्सिको, ब्राज़ील और लेटिन अमेरिका के कई देशों में उन की योजना को लागू भी किया गया। वह अर्थशास्त्री हैं Hernando De Soto। अरनान्डो डी सोटो कहते हैं कि प्रत्येक झोपड़पट्टी वाले की झोपड़ी को उस की सम्पत्ति मान कर उसे स्वामित्व का पट्टा दे दिया जाये। यानी वे अपनी झोपड़ी के कानूनी मालिक। टैक्स भी वे शहर को देंगे..
...हमारे आज के इतिहासकारों ने इस बात को काफी प्रामाणिक ढंग से कहा है कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आए। खासतौर पर सरस्वती नदी (घग्गर-पंजाब, हरियाणा, राजस्थान) की खोज और पुर्नस्थापना के बाद। वे यहीं के मूल निवासी थे और तरह तरह के रंगों, शक्लों और धार्मिक विश्वासों वाले अन्य मूलनिवासियों के साथ रहते थे..
Color Purple प्रतीक बन गया है- एक चिन्ह- जिसे काले, गोरे, पीले अमरीकी अपनी विविधता का स्मृति चिन्ह मानकर पहने रखते हैं । काले अमरीकीयों की भाषा में लिखी गयी यह गाथा विशाल जनसमु दाय के अंत: स्थल पर बिछे हुए कूड़े करकट को उलीच उलीच कर धरातल पर लाती है । गुलामी से पैदा होने वाली तमाम विकृतियां , हीन मानसिकता की स्थितियां, पारिवारिक मूल्य रिक्तता और पुरुषों की नृशंस पाशविकता, और ऐसे जीवन की दिशाहीनता से पैदा होने वाली असंगतियां एक साथ इस उपन्यास में मिलती हैं ।काले अमेरिकियों ने पहले पहल इस आईना दिखाती हुई कृति का विरोध किया था। लेकिन वास्तविकताएं बाहरी समर्थन के अभाव में भी अपने आपको स्थापित करती हैं।
एक सुनियोजित रूप में वर्ण के आधार पर, नस्ल के आधार पर दैनिक अत्याचार, आक्रमणकारियों द्वारा जीते हुए प्रदेशों से मूल निवासियों का सर्व -विनाश कोई ऐसी घटनाएं नहीं है- जिन्हें केवल ऊपरी विवरणों से, छुटपुट झलकियों से, या सहानुभूतिपूर्ण दया धर्म से प्रेरित अश्रु प्रवाह से, काली पीली शब्दों की लकीरों से बयान किया जा सके। इतिहास के ऐसे समय हैं जहां इतिहास की पुस्तकों ने इतना भी नहीं छुआ कि उस दर्द की मध्यम सी आहट की आस पास की हवा को उद्वेलित करती। यह काम उन साहित्यकारों ने किया जिनकी वजह से आज इंसानियत का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है।