लोकतन्त्र की अवधारणा, वस्तुस्थिति और संभावना- कृष्ण किशोर
लोकतन्त्र केवल एक राजनीतिक प्रबन्धन नहीं है। जब तक हमारी दैनिक व्यावहारिक सोच का लोकतांत्रिक आधार पैदा नहीं होता, तब तक हमारी राजनीति का आधार भी लोकतांत्रिक नहीं हो सकता। लोकतन्त्र की अवधारणा हमारी मानसिकता और सामाजिक मूल्यों में निहित अधिक है। इन दोनों की अनुपस्थिति में लोकतन्त्र केवल एक संवैधानिक प्रस्तुति और औपचारिकता बन कर रह जाता है। व्यावहारिक स्तर पर उसे अपनाने और लागू करने के लिए जोर जबरदस्ती का सहारा लेना पड़ता है।