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Harlem Renaissance- Krishan Kishore

Harlem Renaissance- Krishan Kishore

1861 से, जब से अब्राहम लिंकन ने काले अमरीकियों को गुलामी से आज़ाद कराया। संविधान के तेरहवें संशोधन के अन्तर्गत सारे अमरीका में गुलाम प्रथा को कानूनन समाप्त कर दिया गया था।1672 से लेकर जब वर्जीनिया में पहला गुलामों भरा जहाज़ इस धरती पर उतरा था, 1861 तक की गुलामी उन्हें अपनी नियति ही लगती थी।1861 को कानूनी तौर पर आज़ादी का ऐलान एकदम भौंचक कर देने वाली स्थिति थी। काले अमरीकी क्या करें, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए क्या करें? उन्हें सिर्फ़ घरों से मुक्त किया गया था। सामाजिक अधिकार उन्हें कोई नहीं दिया गया। बल्कि पहले से ज़्यादा मुश्किल स्थिति बन गई। पहले वे गोरों के घरों में खेतों खलिहानों में, व्यापारों में उनके साथ रहते थे। अब वे अलग और साधनहीन थे। बिल्कुल अलग। छोटे बड़े घेटो बनते गये, काली बस्तियां। हर तरह से काली। छोटे मोटे काम धंधे जैसे कैसे भी हुए, शुरू किये। लेकिन इस प्रक्रिया में उन काले अमरीकियों का समाज बिल्कुल बिखर गया, टूट गया। पहले गुलाम थे। अब आज़ाद होकर सारे गोरे समाज की घृणा का पात्र बन गए। कहीं किसी बात की कोई सांझ नहीं, कोई नागरिक अधिकार नहीं। शिक्षा और रोज़गार की स्थितियां बनते हुए जब एक देश को आज़ादी के बाद आधी सदी लग जाती है तो एक साधनहीन मानवसमूह को अपने पैरों पर खड़ा होने में कितना समय लगेगा, इस बात का अन्दाज़ा आज की स्थितियों से लगाया जा सकता है। आज़ादी के सौ बरस बाद मार्टिन लूथर का सिविल राईट्‌स आंदोलन इसी बात का प्रमाण है। सौ वर्ष बाद ऐसा आंदोलन कि हमें साथ बैठने दो, साथ पढ़ने दो, हमारे बच्चों को भी उन्हीं स्कूलों में जाने दो। हमें भी अपने गली-मुहल्लों में घर बनाने दो, हमें भी उन्हीं सड़कों पर चलने दो। हम भी ईसा मसीह को मानते हैं, हमें भी उन्हीं चर्चों में जाने दो। हमें नौकरी पर गोरों से आधी मजूरी मत दो, हमें अपनी पुलिस की लाठियों, गोलियों से बचाओ। कानून, कचहिरयां हमारे लिए भी हों। ऐसा आंदोलन उन की आज़ादी के सौ वर्ष बाद क्या दिखाता है? काला समाज अपनी परम्पराओं को बचाता हुआ, नई परम्परायें बनाने में जुट गया। अपना संगीत, नृत्य, साहित्य, सांस्कृतिक पहचान इन दिनों खूब बनी। लेकिन साथ ही सामाजिक और पारिवारिक ज़िम्मेवारियों को निभाने की स्वस्थ परम्पराएं स्पष्ट रूप से उतनी नहीं बन सकीं। पारिवारिक विघटन, बेरोज़गारी, शराब, यौन उच्छृंखलता आदि कमज़ोरियों ने काले अमरीकी समाज में वह स्थिरता नहीं आने दी जो एक मूल्य श्रृंखलित मज़बूत समाज में होती है।

कुछ समय पहले तक अलगाववादी सोच ही थी। उसी सोच में अश्वेत शक्ति को देखा गया। समन्वयात्मक सोच को, एक बृहत्तर अमरीकी समाज की सोच को, कमजो़री समझा गया। मारकॅस गार्वे ने अश्वेत राष्ट्रीयता की बात की थी। अलग काले स्कूल, चर्च वगैरह को उन्होंने अश्वेत शक्ति का प्रतीक माना था। बाद में, कई दशकों बाद मैल्कोल्म एक्स (Malcom X) ने एक अति अलगाववादी रुख इख्तियार किया। उन्होंने साफ कहा कि ‘अपनी अलग पहचान अमरीकी समाज में विलीन करने से वे गोरे हमारे व्यवसाय, पूंजी, शिक्षा, उद्योग – सब कुछ पर कब्ज़ा कर लेंगे। हम फिर उन्हीं पर हर बात के लिए निर्भर हो जाएंगे’ । ब्लैक पैंथर इसी तरह का अति अलगाववादी उग्रवादी अल्पकालिक जुट था जो जल्दी ही अपनी अपरिपक्व सोच का शिकार हो कर समाप्त हो गया। अलग रह कर अपनी शक्ति अर्जित करना, अपनी पहचान बनाना, अपनी मौलिकता और सांस्कृतिक जड़ों को खोज़ कर और उन के आधार पर आगे बढ़ना एक बात है, उग्रवादी होकर दूसरों से जबरन कुछ पाने का प्रयास दूसरी बात है। टी.वी. स्टार बिल कॉस्बी और उन जैसे कई काले उसी अश्वेत शक्ति को जुटाने में लगे हैं। पिछले वर्ष एक घोषणापत्र ‘Come on People’ में उन्होंने लिखा था, ”गोरों ने हमें बिल्कुल अलग करके रखा। उस कष्ट से बहुत सी अच्छी बातें भी पैदा हुईं। उसने हमें अपनी देखभाल खुद करना सिखाया। हमने अपने रेस्तरां, अपने होटल, अपने थियेटर खोले, अपनी बीमा कंपनियां चलाईं। अपनी खानेकपड़े की दुकानें खोलीं। शवगृह जैसी चीजें भी हमारी अपनी थीं। हमारे लोगों को काम मिला। सारे काले समुदाय की आर्थिक शक्ति बढ़ी। गोरों ने हमें अलग करके हमें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया। इस तरह के घोषणापत्र में वे अपने आप को काली राष्ट्रीयता की अति अलगाववादी नीति से जोड़ कर नहीं देखते। जब से अलगाव खत्म हुआ, काले और गोरों के आर्थिक और सांस्कृतिक मिश्रण की स्थिति आई, उस में सिर्फ़ कालों को नुकसान हुआ।

अलगाव के समय जो सांस्कृतिक उपलब्धियां काले अमरीकनों की हुईं, उन का विश्वव्यापी प्रभाव हुआ। ‘हारलेम रिनेसां’ (Harlem Renaissance) 1920-1940 तक का समय इस का उत्कर्ष उदाहरण है, जब हारलेम काले लोगों का केन्द्र बन गया। हारलेम न्यूयार्क शहर का ही एक हिस्सा है। प्रथम विश्वयुद्घ के बाद अमेरिका और यूरोप में औद्योगिक क्रांति शुरू हुई, उस समय अश्वेत अमरीकी अपनी स्वतन्त्रता, नागरिक अधिकारों की लड़ाई और अपनी संस्कृति, अपने विशिष्ट जीवन दर्शन और अपने अफ्रीकी मूल से जुड़ने का संघर्ष कर रहे थे। गुलामी समाप्त हुए आधी से ज़्यादा सदी हो गई थी, लेकिन अमरीकी कानून उन पर अपने प्रतिबन्ध और भी कड़े कर रहा था। ‘जिम क्रो’ के काले कानूनों के नाम से ये प्रतिबन्ध जाने जाते हैं। अमेरिका के दक्षिण भागों में अश्वेतों की संख्या अधिक थी। खेतों की गुलामी और मज़दूरी से आज़ाद होकर अश्वेत उत्तर और पश्चिम की ओर जाने लगे। वहाँ उद्योग धन्धे ज्यादा थे। उत्तरी भाग हमेशा ही गुलामप्रथा विरोधी होने के कारण अश्वेतों के प्रति उदार भी था। इसी कारण बड़ी संख्या में अश्वेत शिकागो और न्यूयार्क में आ बसे। बीसवीं सदी के आते आते हारलेम में लगभग दो लाख अश्वेत आ बसे। मुश्किल से तीन वर्ग मील के इलाके में इतनी बड़ी अश्वेत आबादी अपनी शक्ति का संगठन और अपने मूल्यों को विकसित करने में लग गई। हर स्तर के लोग यहां आ बसे थे। इस अश्वेत सागर में असीम संपदा छिपी हुई थी। अपने अस्तित्व की ऊंचाईयां और गहराईयां नापने का अतुल उत्साह इस समुदाय में पैदा हुआ। अशिक्षित, शिक्षित, मज़दूर, दुकानदार, अदाकार, संगीतकार, साहित्यकार इत्यादि एक विशाल आत्मोदय में लग गए। न्यूयार्क का हिस्सा होने के कारण हर बात का विस्तृत केन्द्र वह पहले ही था। लेकिन न्यूयार्क के गोरेपन ने हारलेम के काले रंग को अपनी पूरी चमक के साथ उभारा। अपनी अस्मिता की ऐसी पहचान उजगार हुई कि इस तीन वर्गमील की संस्कृति, कला, संगीत अमेरिका में ही नहीं, दुनिया के बाकी हिस्सों में भी गूंजने लगा। अश्वेत सामाजिक दर्शन, जो इस निद्राभंग से पैदा हुआ, वह मार्टिन लूथर किंग के नागरिक अधिकार आंदोलन का भी आधार बना। बीस वर्ष के इस समय काल में इस कौम की सदियों की उपलब्धियां छिपी हुई हैं। सदियों के बोझ से दबा मानस एक ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा। इस समय का कला, संगीत, साहित्य और दर्शन जैसे पिछले जन्म की स्मृति भी है, आज का जीवन भी और भविष्य के सपने भी। बीस वर्ष का यह समय ऐसा उन्मुक्त आकाश है, जहां उड़ान के बाद दिशाओं और ऊँचाईयों की कोई सीमा नहीं रहती।

इन दिनों कई संस्थाएं, पत्रिकाएं और समाचार पत्र अश्वेत पत्रकारों और लेखकों-दार्शनिकों ने स्थापित किए। W.E.B. Dubois के नेतृत्व में NAACP (नेश्नल आरगेनाईजे़शन ऑफ कलर्ड पीपल) की स्थापना हुई, जो अश्वेत अधिकारों की प्रमुख संस्था है। ‘क्राईसिस’ पत्रिका भी ‘डुबोयन ने शुरू की। उन्होंने समझौतावादी सोच को नकार कर अश्वेत पहचान का नारा दिया। ‘आपरचुनिटी’ चार्ल्स जानॅसन और ‘दि मैसेन्जर’ फ़िलिप रैन्डाफ के संपादन में शुरू हुई। सब से प्रसिद्घ पत्रिका ‘नीग्रो व्लर्ड’ अश्वेत राष्ट्रीयता के अग्रज चिंतक मारकॅस गार्वे द्वारा शुरू की गई। संगीत की दुनिया पर जाज़ संगीत और ब्लूज़ सारे विश्व पर छा गए। बीटल्स को भी इसी संगीत ने प्रभावित किया था। हारलेम के कहवा संगीत और नृत्यमंचों की धूम थी। अपोलो थिएटर का अपना ऐतिहासिक महत्व है। साहित्य की दुनिया सब से अधिक महत्वपूर्ण रही। अश्वेत अनुभवों और बदलती हुई स्थितियों से पैदा होने वाली सामाजिक दृष्टि के साथ साथ सम्भावनाओं की शक्तिमता इस दौर के साहित्य में उसी तरह उजागर हुई जैसे किसी कौम का इतिहास अपने शुरू से आखिर तक एक ही रचना में बाहर आने को तत्पर हो। उस समय की कविताएं आज भी प्रसिद्घ हैं। कल की स्मृति तीक्ष्ण है और आज का अहसास आने वाले कल की शक्ति से भरपूर है। शर्मिन्दा सिर्फ़ उन्हें होना है जो कल इस स्थिति को देखेंगे। लैगंस्टन हयूज़ (जो इस समय के सब से सशक्त कवि हैं) की एक नन्ही सी कविता इस सच को ऐसे समेटती है।

मैं भी अमेरिका के गीत गाता हूँ

मैं भी अमेरिका के गीत गाता हूँ

मैं उनका अश्वेत सहोदर हूं

मुझे वे मेहमानों के सामने

रसोईघर में जाकर खाने को कहते हैं

लेकिन मैं हंसता हूं, खूब खाता हूं

और खूब पुष्ट होता हूं

कल मैं भी उस मेज़ पर बैठूंगा

जब उनके मेहमान आएंगे

कोई मुझे कह नहीं पाएगा

कि जाओ किचन में खाओ

वे देखेंगे कि मैं कितना सुन्दर हूं आकर्षक हूं

और बेहद शर्मिन्दा होंगे

मैं भी अमेरिका के ही गीत गाता हूं। 

Krishan Kishore

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