मध्य युद्घ के काफी आगे तक नया ज्ञान-विज्ञान शैतानियत मानी जाती रही है। सब से बड़ा दोष रहा है अपनी अलग आजाद सोच। अधार्मिक सोच नहीं, धर्माधिकारियों के बनाए लौह यन्त्र के बाहर रहने की सोच। एक नृशंस सत्य है कि युग चेतना धार्मिक संस्थागत यातनाओं, हत्याओं और सामूहिक दैत्य कुकृत्यों को मूक-बधिर होकर देख-सुन और सह लेती थी। विरोध की कोई कंकरी भी इस घोर महासमुद्र में नहीं गिरती थी।
कोई भी आजाद सोच जो धर्म के लिए जरा भी चुनौती बने, उसे कड़े से कड़े दण्ड देने की अनुमति धर्मा-धिकारियों ने जाने कहां से प्राप्त की हुई थी। उन की शक्ति ही शास्त्र संगत मानी जाती थी। धर्म द्वारा दण्डित और आहत लोगों की न कोई गणना है, न स्वरूप। चारों तरफ चींटियों की तरह लकीर में चलते हुए मानव-समूह धर्म की अगवाही और पिछवाही में व्यतीत और अतीत होते रहते थे। धरती पर और आकाश में भी उनका भाग्य दृश्य और अदृश्य धार्मिक महन्तों-सामन्तों के चरण कमलों में था। लेकिन कभी-कभी ऐसी आंधी भी आती है, थोड़ी देर के लिए ही सही कि वृक्ष पर एक पत्ता भी नहीं रहता। ऐसी ही आंधी मध्ययुग में जोन ऑफ़ आर्क बन कर आई थी। तीन वर्ष में ही एक किशोरी ने नीचे से ऊपर तक धर्म वृक्ष को झिंझोड़ दिया था। इस फ्रांसीसी युवती ने स्वयं दैवी आवाजें सुनने और उन के अनुसार चलने का दावा किया। उसने पुरुषों जैसे कपड़े पहनकर सब के धार्मिक और नैतिक शील को भंग किया। अपने देश फ्रांस के राजा और देश की रक्षा के लिए फौजों का नेतृत्व किया, बड़े-बड़े सेनापतियों को अंगूठा दिखाया और फ्रांस के शत्रुओं को हराया। लेकिन ऐसी शक्तिशाली 17-18 वर्षीय युवती को धर्म वाले कैसे सहन कर सकते थे। उस पर जादूगरनी होने का, धर्म के प्रतिनिधियों के खिलाफ जाने का, अपनी निजी आवाजें सुनने का आरोप लगाया गया। धर्म की अदालत बिठायी गई और चौराहे पर जिन्दा ज़ला दिये जाने की सजा सुनाई गई। जोन को लालच दिया गया कि वह क्षमा मांग ले, अपने पाप स्वीकार कर ले, चर्च की शरण में आ जाए तो उस की जान बख्श दी जाएगी। जान का नहीं, आजादी का लालच उसे क्षणिक प्रलोभन में डा़लता है। जार्ज बर्नाड शॉ अपने नाटक ‘सेन्ट जोन’ में इन क्षणों को बांधता हैं। धार्मिक उद्दण्डता और व्यक्ति की आजादी को जीवन्त करती यह साहित्यिक कृति जोन ऑफ आर्क को पुनः जीवित कर देती है।
आखिर जोन को चौराहे पर आग के हवाले कर दिया गया। चर्च को लगभग छः सौ साल लगे अपनी गलती स्वीकार करने में जब 1920 में उन्होंने जोन को ‘सेन्ट जोन’ की उपाधि से विभूषित किया। जोन व्यक्तिगत आज़ादी का ज्वलन्त प्रतीक है। जोन का ज्ञान उस की आवाजें थीं जो चर्च के लिए खतरा बन गई। जोन ऑफ़ आर्क आज भी चौराहे पर खड़ी है। चिताएं आज भी उसके लिए तैयार हैं।