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Periodical Krishan Kishore

Periodical Krishan Kishore

जैसे जैसे इतिहास साहित्य का रूप लेता है, उसमें कुछ नए आयाम शामिल होते चले जाते हैं। इतिहास एक रास्ते की तरह कहीं से कहीं होता हुआ हम तक पहुंचता है । उस पर उतना ही पीछे जा सकते हैं, जितना रास्ता है । उसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ है ,जो हम तक नहीं पहुंचता । इतिहास उसकी कल्पना कहीं करता है, कहीं नहीं करता। साहित्य उसी कल्पना का सहारा लेता है -उस सब कुछ को एक रूप देने के लिए जो जस का तस स्थूल रूप में हमारे सामने नहीं है। जो कुछ हमारे सूर ,तुलसी, कबीर, रहीम खुसरो अपने समय का बोध करा गए हैं, वह कोई इतिहासकार नहीं करा गया। इसी तरह हमारा प्राचीन दार्शनिक  वैदिक साहित्य ही सर्वोपरि साक्ष्य है, अपने समय का। तब तक का इतिहास किसी अन्य ठोस रूप में हमारे सामने या तो है नहीं, या शंका ग्रस्त है।  इतिहास किसी भी समय का शारीरिक चित्रण हमारे सामने रख सकता है, उस समय के जीवन का समग्र सत्य नहीं बन सकता। समग्र सत्य तक पहुंचने के लिए इतिहास और साहित्य के संगम स्थल तक पहुंचना जरूरी है ।वही समय का तीर्थ स्थान है।

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