Song of Hiawatha -Henry Wordsworth Longfellow की यह महा काव्यात्मक कृति व्यापक स्तर पर अमरीकी मूल निवासियों की सांस्कृतिक संघर्ष गाथा को अमरीकी जीवन की मूल धारा का हिस्सा बनाती है।
Longfellow उन दिनों हार्वर्ड विश्ववद्यालय में पढ़ा रहे थे जब वहां के मूल निवासियों पर सरकार की बर्बरता अपने शिखर पर थी। आर डब्ल्यू इमर्सन भी उन दिनों अपना रोष और शोक प्रकट कर रहे थे। इस कृति की रचना में तात्कालिक प्रभाव उन पर हुआ-मूल निवासियों का एक सांस्कृतिक कार्यक्रम और नृत्य नाटिका देखकर ,जो वास्तव में कुछ कलाकारों ने एक उत्सव में किया था। रंग बिरंगी मानव आकृतियों का यह पाओ -वाओ नृत्य लॉन्गफैलो के मन में बचपन में पढ़ी कहानियों को ताजा कर गया। सांस्कृतिक पुनरुत्थान के साहसिक नायक का चरित्र भी इन्हीं कहानियों से उदय हुआ था। मूल निवासियों के सर्वांगीण पुनर्निमाण के प्रयास का बीज मंत्र था, आपसी छुटपुट और निरंतर बने रहने वाले युद्ध से मुक्ति और एक शांतिपूर्ण सहअस्तित्व। इस प्रयास का परिणाम होगा, एक सुनहरी आदर्श प्रदेश जहां सभी संघर्षों से मुक्त अवस्था साधारण जीवन की दैनिक स्थिति होगी। प्राचीन धर्म कथाओं या लोक कथाओं के नायकों की तरह ही हिआवाथा के पास कुछ अलौकिक शक्तियां थीं ,जिनके प्रयोग से वह प्रकृति और जीवन में व्याप्त दुष्टता को समाप्त कर सकता था।हिआवाथा पेड़ों ,जानवरों तथा प्रकृति के अन्य तत्वों से बतिया सकता था। उसके कुछ शक्तिशाली साथी थे जो उसके इस अभियान में सहयोगी थे। हिआवाथा को चिंता थी कि किस प्रकार कबीलों को अपने शरीर से युद्ध के प्रतीक रंगों को धो देने की प्रेरणा मिले। उनमें अपने हथियारों को धरती में दबाकर शांति का गीत गाने की उत्सुकता जगे।हिआवाथा और मिनीहाहा की प्रण्यात्मक संधि के बाद इस तरह की स्वर्णिम स्थिति का उदय हुआ। यह महा काव्यात्मक रचना अत्यंत लोकप्रिय हुई। 1855 में यह कृति प्रकाशित हुई थी। पहले 5 सप्ताह में ही इसकी 5000 प्रतियां बिक गई थी। चीजों के नाम ,स्थानों और मार्गों के नाम हिआवाथा के नाम पर रखे गए थे।
नौजवान मोंडामिन ..
कोमल और चमकती हुई लटाओं के साथ
हरे और पीले वस्त्रों के साथ
लंबी और चमकीली कलगी के साथ दरवाजे पर खड़ा था,
और जैसे कोई नींद में चल रहा हो
पीला ,कमजोर लेकिन बिना निरुत्साहित हुए
हिआवाथा झोपड़ी से आया और कुश्ती लड़ी
……..
यकायक हरी भूमि पर अकेला खड़ा था हियावाथा !
अत्यधिक थकावट से हांफता हुआ
संघर्ष से दिल धड़कता हुआ
और उसके सामने बिना सांस बिना जीवन
पड़ा था नौजवान
बिखरे हुए बालों के साथ
टूटी कलगी, चिथड़े वस्त्र,
वह सूर्य उदय में यहां मृत पड़ा था।
और हिआवाथा ने एक कब्र बनाई
मोंडामीन से अलग की उसकी कलगी
मिट्टी में लिटा दिया उसे
… बगुले ने उदास दलदली भूमि में
शोक की चिल्लाहट पैदा की
दुख और वेदना का क्रंदन किया…
….. दिन प्रतिदिन जाता था
इंतजार और निरीक्षण के लिए इसके पास,
काली कोमल मिट्टी का डला रखता था
खरपतवार और कीड़ों से साफ रखता था इसे
और चिल्ला कर दूर रखता था
काले कौओं के बादशाह को।
और फिर अंततः एक छोटा हरा पत्ता जमीन के ऊपर फूटा
फिर एक और, फिर एक और
ग्रीष्म काल समाप्त होने से पहले
अपने तमाम सौंदर्य के साथ मक्की का पौधा खड़ा था
चमकती पोशाक के साथ और अपनी लंबे कोमल पीली लटों के साथ
खुशी में हिआवाथा जोर से चिल्लाया, यह मंडामीन है!
आदमी का मित्र!