1987 में टोनी मोरिसन का उपन्यास The Beloved प्रकाशित हुआ। 1856 की एक सच्ची घटना को आधार बना कर लिखा गया यह उपन्यास इतिहास के पौने दो सौ साल पुराने गर्त में उतरता है। 1856 में मारग्रेट गार्नर की कहानी समाचार पत्रों में छपी थी। अपने मालिक के जुल्मों से भागकर जाने के प्रयास में वह ओहायो नदी पार करते हुए पकड़ी गई थी। दोबारा गुलामी की ज़िन्दगी में वह अपनी नन्ही बच्ची को नहीं ले जाना चाहती थी। मारग्रेट गार्नर ने तब अपनी छोटी बच्ची को मार दिया था, गुलामी से बचाने के लिए। तब का अश्वेत अंधेरा कितना घना था, उसी का इतिहास लेखक की अनुभूत कल्पना रचती है। नायिका इन सभी बातों की प्रत्यक्ष या परोक्ष साक्षी है। जो उसके सामने नहीं घटा, वह भी उस से जुड़ा है। उन्हीं पात्रों के माध्यम से जिन का वह हिस्सा बन गई है। कहानी कहने की यह शैली पाठक को उस घटना क्षण के दर्द से बचा लेती है, पीड़ा को तटस्थ होकर देखने की स्थिति में ले आती है। पीड़ा का क्षण कोई और अहसास उस से जुड़ने नहीं देता, साक्ष्य चिन्तन पैदा नहीं करता।
इस गुलामी के इतिहास को जीवन्त करने के लिए टोनी मोरिसन को सन्न कर देने वाले उस समयांश से गुजरना पड़ा होगा। आंख की जगह आंख, कान की जगह कान को रख कर, एक एक दुख को, टुकड़े बीन कर अपनी जगहों पर रख कर यह चित्र पूरा करना पड़ा होगा। इस पज़ल बोर्ड के कई टुकड़े टोनी को नहीं मिले होंगे। कई रंग छूट भी गए होंगे। कहीं काला ज़्यादा काला नज़र आया होगा, तो कहीं लाल कम लाल। फिर भी इस चित्र की निर्मिति में साहस है, धीरज है, निर्द्वन्द्व भावप्रवणता है, घटनाओं और स्थितियों को तारतम्य में जोड़ कर देखने की बाल एकाग्रता और कलात्मकता है, अपने समय में रहते हुए, आगे और पीछे देख सकने की कल्पनाशीलता है, जो एक सच्चे इतिहासकार या साहित्यकार में होती है या होनी चाहिए। उन दिनों का इतिहास कहने लिखने का कोई और तरीका इतना कारगर नहीं हो सकता।
‘Beloved’ उपन्यास के आरम्भ में ही नायिका अपनी सास की कथा कहती है। एक महानायिका की –
”बेबी सग्ज़ (सास) जानती है, अपने हों या पराए –अगर वे भाग नहीं गए या फांसी नहीं चढ़ाए गए, तो उन्हें या किराए पर चढ़ा दिया गया या किसी दूसरे गोरे व्यक्ति को उधार दे दिया गया, गिरवी रख दिया गया या जुए में हार दिया गया। बस ऐसे ही मोहरे बनते रहे सभी। उस के आठ बच्चे थे। छः के अलग अलग पिता थे। बस एक Hale को ही वह अपने पास लम्बे समय तक रख सकी। दो छोटी बेटियां अभी मुश्किल से दूध के दांतों की उम्र में थीं। जाते हुए उन्हें वह मिल भी नहीं पाई। उन्हें एक सौदे में एक साहेब को दे दिया गया, मैथुन के लिए। बदले में एक बेटा बचा पाई। लेकिन उसे भी मालिक ने कुछ इमारती लकड़ियों के बदले बेच दिया। उसने वादा किया था कि वे उसे (सग्ज़ को) गर्भ नहीं देगा। लेकिन वह वायदा भी उसने नहीं निभाया। उस बच्चे को वह प्यार नहीं कर सकी और बाकियों को बचा नहीं सकी। जो भगवान ने लेना है, ले ले, उस ने सोचा। और भगवान ने जो लेना था, ले लिया। उसे मालिक से यह बेटा ‘Hale ‘ मिला। बाद में आज़ादी मिली जो अब उस के किसी काम की नहीं थी।”
भुक्त भोगी ने कह दी बड़ी सादगी से अपनी बात। अपने ही किसी को अपना दुख सुनाने में कैसी नाटकीयता। कहने की ज़रूरत भी कहां है? एक ख़बर जैसी है कि और क्या हुआ। दुख को कैसे कोई खींचतान कर बड़ा करे। एक खास गहराई से नीचे शब्द कहां रह जाते हैं?
उस समय की करीब करीब हर अश्वेत औरत की यही कहानी थी। पति किसी और का गुलाम है, पत्नी किसी और की। मिलना कभी कभी किसी सीमित छुट्टी की घड़ियों में।
मालिक अक्सर अश्वेत औरतों को माएं बना डालते थे। फिर उन्हीं बच्चों को गुलाम बना कर किसी और को जब कभी भी, किसी सौदे में बेच दिया जाता था। लकड़ी भी कभी कभी इन इन्सानों से मंहगी हो जाती थी। अगर बच्चे गोरे पिता और काली मां की संतान होते तो उन का रंग बीच का सा हो जाता। इन्हें मुलाटो कहते हैं। सब से ज़्यादा अवहेलना और निदर्यता इन्हीं बच्चों को सहनी पड़ती। अपने पिताओं के अपराधबोझ के ये बड़ी जल्दी शिकार हो जाते। पत्नी के गर्भ में किस का बच्चा है, इस बात के दुख दर्द में कौन अश्वेत पुरुष जलता। पत्नी को गले लगा कर और अधिक प्यार ही किया जा सकता था। पत्नी का अपमान, बिकते हुए बच्चे, रेप हो कर मां बनती औरतें, इस घर से उस घर में बदले जाते हुए गुलाम पुरुष यही वह ज़िन्दगी थी लाखों लोगों की, जिस का विरोध कहीं से नहीं उठता था।
इतिहास–साहित्य सही इतिहास भी है और साहित्य भी। अत्यन्त दुख, भाव कृपणता और दुर्गम तटस्थता से लिखी हुई रचना टोनी मोरिसन की यह कृति Beloved है। कथा में अपनी बच्ची की हत्या करने के बाद उसे जल्दी से दफन करने का एक प्रसंग है। सेथ एक कब्रिस्तान में है। उसने एक पत्थर चुना जो कब्र पर लगाना है। लिखना है उस पत्थर पर नाम और कुछ। अपनी बच्ची का गला काट कर उसने उसे मारा था। खून से हाथ अभी भी चिपचिपाए हुए थे। वह बात करती है कब्रिस्तान में एक पत्थर पर अक्षर गोदने वाले कारीगर से। कारीगर पूछता है तुम्हारे पास दस मिनट हैं?मै बिना पैसे लिए तुम्हारा यह काम कर दूंगा। दस मिनट, सात अक्षरों के लिए। तो दूसरे दस मिनट में वह Dearly (प्रिय) भी खुदवा सकती है। Dearly Beloved, लेकिन जो कुछ सौदा उस ने किया, वह बस एक शब्द के लिए ही था। वही एक शब्द उसके लिए अर्थपूर्ण था। यही उस ने सोचा कारीगर के साथ उन खुरदरे, कब्र के पत्थरों के बीच अपनी देह रगड़ते। कारीगर का बेटा पास खड़ा देखता रहा। कारीगर के चेहरे पर वही पुराना गुस्सा था, सिर्फ भूख नयी थी। वो दस मिनट काफी थे एक और उपदेशक को चुप कराने के लिए, एक क्रोध से भरे कस्बे को शांत करने के लिए।
उस की मृत बच्ची की आत्मा में इतना क्रोध समा गया था कि उस कारीगर के बेटे के सामने अपना शरीर खुरचवाना काफी नहीं था, उसे शांत करने के लिए। क्रोध इस घर में बसा हुआ है, उस बच्ची के इसी क्रोध से घिरे हुए ही जीना है। बस यही काफी नहीं रहा। वही दस मिनट वह अब भी सहती है, वही जो उसने सुरमई रंग के पत्थर के साथ सट कर गुजारे थे। उसके घुटने पूरे खुले थे, एक कब्र की तरह खुले। लेकिन बच्ची का क्रोध कम नहीं होता। घर की दीवारों में समा गया है….।
टोनी मोरिसन एक सतरंगी वृक्ष का वर्णन करती हैं। अश्वेत पीठ पर फैले हुए सतरंगी वृक्ष का। प्रसव से पहले जब ऐमी ने सेथ की पीठ से कपड़ा उठाया, तो वह बड़ी देर एक खामोशी में डूबी रही। फिर इस तरह बोली जैसे कोई सपने में बोलता है। एक अस्पष्ट प्रस्फुटन –
‘ये तो पेड़ है, एक चोकबेरी का पेड़ । देखो, ये इस पेड़ का तना है। पूरा लाल और बीच से पूरा खुला हुआ, रस से भरा हुआ। और यहां ये टहनियां हैं, तुम्हारी पीठ पर अलग अलग फैली हुई टहनियां। और पत्ते भी हैं और फूल भी, नन्हे चेरी के फूल, सफेद। तुम्हारी पीठ पर तो पूरा पेड़ उगा हुआ है, अपनी पूरी बहार में है। परमात्मा के मन में क्या है मैं नहीं जानती। मुझे बस हैरानी होती है। मैंने भी पीठ पर कोड़े खाए हैं। लेकिन इस तरह से तो कभी नहीं।‘ सेथ ने एक लम्बी सांस भरी और ऐमी अपने दिवास्वप्न की प्रस्फुटन से एक झटके में बाहर निकल आई।
इस तरह की अश्वेत पीठें, बाँहें, टांगें जिन पर कोड़ों ने पेड़, पौधे, फूल उगा दिये थे, हर घर में थे। लेकिन ये पौधे और फूल तोड़े नहीं जा सकते थे, मुर्झाने भी नहीं दिए जाते थे। उम्र भर का लम्बा बसंत था इन के लिए। थोड़े थोड़े दिन बाद इन में नए रंग भर दिए जाते थे। मालिकों के हाथों में नए हंटर, नए चाबुक आ जाते थे।
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1852 में एक श्वेत महिला हैरियट बीचर स्टोव द्वारा लिखा उपन्यास Uncle Tom’s Cabin अश्वेत समस्याओं की क्रूरता को बृहत्त स्तर पर उजागर करने वाली अत्यंत प्रसिद्ध कृति है। कहा जाता है कि लेखिका स्टोव जब अब्राहम लिंकन को मिली तो उन्होंने कहा कि अच्छा, तुम ही वो छोटी सी दिखने वाली महिला हो जिसने इस महान युद्ध का आरंभ किया। वास्तव ही में इस उपन्यास से अमेरिका के दक्षिणी राज्य में, जहां गुलाम सब से अधिक थे, भड़क उठे थे।
अमरीका के गृहयुद्घ (1860-64) के पहले और युद्घ के बाद हज़ारो, अश्वेत भगोड़ों के अनुभव क्या थे? गुलामी से भागकर कहां जाते? भागना अगर संभव हो भी गया तो भागकर जाएं कहाँ?ऐसे गुलाम जनों की अनगिनत कथाएं उन्हीं द्वारा लिखी हुई मिलती हैं – जिन्हें Slave Narratives कहते हैं। उन कथाओं में गुलामी के जीवन की ऐसी सच्ची कहानियां दर्ज हैं जो सारी इतिहास पुस्तकों को कूड़े में फेंक देती हैं। बहुत बाद में ये सब प्रकाशित हुईं, तब एक सामूहिक सामाजिक साहस पैदा हुआ, अपने आसपास रहने वालों को सदियों पुराने दर्द सुनने सुनाने का। मालिक के घर के बाहरी हिस्से में दबड़ों (केबिनों) में रहने वाले गुलामों को दिन में कितनी बार और क्यों कोड़े खाने पड़ते थे, इसके लिए उन्हें मन या शरीर से तैयार होने की ज़रूरत नहीं होती थी। मालिकों के पास भूल बताने का एक ही तरीका था, चाबुक चलाना। बच्चे अपने पिताओं और मांओं को कोड़े खाते देखते रहते। यकीनन ही उन्हें क्रोध तब नहीं आता था। स्वीकृति थी, मौन और मुखर दोनों। मां/पिता को बहुत मारा है मालिक ने, इसका दुख जरूर उन में बंटता होगा। बच्चे भी मां बाप के सामने खूब पिटते थे, यहां भी क्रोध से ज़्यादा दुख ही था। दूसरे मालिक के घर से कोड़े खाकर आने वाला पति उन तीन चार घंटों में क्या अपनी पीठ, बाजू, टांग दिखाए। लेकिन छुपता नहीं होगा। पत्नी पूछती भी नहीं होगी ‘आज मालिक ने बहुत मारा है‘ बस थोड़ा और ज़्यादा प्यार कर लेती होगी। कही, अनकही बातों से – Slave Narratives और दूसरी रचनाएं अटी पड़ी हैं। औरतों का कोड़े खाने के बाद सेक्स के लिए मजबूर होना, लगातार मजबूर होते रहना, मां बनना, जिस किसी की मां बनना – कैसी नियति थी? पशुओं के समाज तक में जिस किसी की मां बनना तो स्वीकृत है, लेकिन कोड़े खाने के तुरन्त बाद यौन क्रिया करना और फिर मां बनना कहीं भी स्वीकृत नहीं। किसी योजना में स्वीकृत नहीं। यह निजाम खुले आम स्वीकृत रहा। सब को इस बात का भान था। सारे गोरे, भूरे, पीले समाज सब जानते थे इन अनहोनी–होनियों को। सारे चिंतक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, दार्शनिक जानते थे। सैंकड़ों साल ये होता रहा और वे केवल मनुष्य की दूर दराज़ की नियति की बात लिखते सोचते रहे। जिस बात पर तलवार उठनी चाहिए थी, कलम भी उस समय नहीं उठी। भुक्तभोगियों ने ही अपनी वेदना हर समय में सुनाई और लिखी। 1861 से पहले कुछ साहसी अश्वेत गुलाम भागकर उत्तर की तरफ चले जाते थे। भागने का मतलब अक्सर मौत ही होता था। हैरियट जैकब्स ऐसी ही असाधारण महिला थीं– जिनका आत्मकथन अश्वेत इतिहास और साहित्य में एक उज्वल स्थल है। उनकी आत्मकथा पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती है।
…मेरे लिए गुलामी के दिनों की बात लिखना बेहद दुखद है। पर पीछे मुड़ कर देखना तसल्ली भी देता है। उन अंधकार भरे दिनों के साथ मेरी अच्छी बूढ़ी नानी की यादें जुड़ी हैं जैसे काले गहरे समुद्र पर हल्के नीले बादल होते हैं…
फ्रेडरिक डगलस ने अपनी आत्मकथा में गहन संवेदना के धरातल पर खड़े होकर तर्कशील लहजे में एक इतिहास रचा है। नेरेटिव ऑफ द लाइफ ऑफ फ्रेडरिक डगलस अमेरिकी अंतर्विरोध की एक ऐसी ख्यातिपूर्ण रचना है जिसे शायद ही कोई अमेरिकी ना जानता हो। लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस में एक विशेष हॉल डगलस और उनकी कृतियों का। डगलस (1818-95) उस समय पैदा हुए जब अफ्रीकन अमेरिकी लोगों की जिंदगी का गहनतम काली रात का पिछला पहर था। एक गुलाम हैसियत से काली मां के पेट से जन्मे गोरे बाप की हरामी औलाद होना दोहरा संघर्ष था उनकी जिंदगी का। नंगी पीठ पर कोड़े लगाने वाला उनका श्वेत मालिक और बाप एक भयानक संस्था का पुर्जा मात्र था। आखिरी वक्त तक अधिकारों के लिए संघर्षशील इस अश्वेत अमेरिकी का योगदान इंसान की मुक्ति का स्वर्ण पृष्ठ है।
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कल का अन्धेरा आज से कितना भिन्न है या एक जैसा है, टोनी मोरिसन और एलिस वॉकर के उपन्यासों को बराबर रख कर पता चलता है। एलिस वॉकर की कृति है Color Purple- जो आज के अश्वेत पक्ष के एक मार्मिक सत्य को उजागर करती है। आज के अश्वेत समाज की दुखती रगों पर हाथ रखता हुआ यह उपन्यास काफी बेचैन कर गया समाज को। 1983 में अमरीका में सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान Pulitzer prize से सम्मानित Color Purple की कृतिकार एलिस वॉकर 1944 में जॉर्जिया में एक किसान के घर एक फार्म पर पैदा हुई थी । उनका परिवार किराए पर खेती करने वाला निम्न आय वाला परिवार था । आठ भाई बहनों के साथ छोटे से घर में बड़ी होने वाली इस बच्ची, किशोरी ,युवती ने क्या नहीं देखा होगा ? उनकी पहली कृति एक कविता संग्रह है जो उनके कॉलेज में पढ़ते हुए ही प्रकाशित हो गई थी । बारह उपन्यास, पाँच कहानी संग्रह, आठ कविता संग्रह और बारह दूसरे विषयों पर पुस्तकों की लेखिका एलिस वॉकर सिर्फ कलम पकड़ कर ही संतुष्ट नहीं होती । सिविल राइट्स आंदोलन में अग्रणी कार्यकारी रही हैं । स्त्री अधिकारों की लड़ाई में, अगली पाँत में आने वाली विचारक और क्षेत्र सैनिक के रूप में उनका अथक प्रयास और योगदान है । समय और संस्कृति के निर्माण में काली औरतों की भूमिका को रेखांकित करने वाली उदार राजनीतिक सिद्धांतों में विश्वास रखने वाली एलिस वॉकर तरह तरह के विवादों से घिरी रही हैं । अपने द्वीलिंगी संबंधों को मुखरता से स्वीकार करने वाली एलिस स्त्री अधिकारों को जाति, लिंग ,धर्म रंग इत्यादि से उपर उठ कर देखती हैं । Color Purple प्रतीक बन गया है– एक चिन्ह– जिसे काले, गोरे, पीले अमरीकी अपनी विविधता का स्मृति चिन्ह मानकर पहने रखते हैं । काले अमरीकीयों की भाषा में लिखी गयी यह गाथा विशाल जनसमु दाय के अंत: स्थल पर बिछे हुए कूड़े करकट को उलीच उलीच कर धरातल पर लाती है । गुलामी से पैदा होने वाली तमाम विकृतियां , हीन मानसिकता की स्थितियां, पारिवारिक मूल्य रिक्तता और पुरुषों की नृशंस पाशविकता, और ऐसे जीवन की दिशाहीनता से पैदा होने वाली असंगतियां एक साथ इस उपन्यास में मिलती हैं ।काले अमेरिकियों ने पहले पहल इस आईना दिखाती हुई कृति का विरोध किया था। लेकिन वास्तविकताएं बाहरी समर्थन के अभाव में भी अपने आपको स्थापित करती हैं।
नेटी और सैली दो बहनें अपने सौतेले पिता और कमजोर मां के पास रहकर कब तक सुरक्षित रहतीं? भरपूर शोषण ही उनका वृत्त है। अपने पिता से संताने पाकर भी उन्हें सुरक्षित रखना उनकी स्वेच्छा पर नहीं। तीन बच्चों का पिता उसका पति होकर भी दूसरी औरत की कामना में है। भरपूर शोषण और अपमान के बाद अपना अबूझ साहस ही उनकी बदकिस्मती को थोड़ा कम करता है। विषाक्त वृत्तों से बाहर भी सिर्फ अकेलेपन के अतिरिक्त क्या है? लेकिन वहीं सैली और नेटी के लिए उम्मीद की रोशनी न सही, अंधेरे की गहनता थोड़ी कम होती है। स्त्रियां ही आखिर एक दूसरे का बाहरी संबल भी बनती हैं और भीतरी स्त्रीपन का एहसास भी सुरक्षित रखती हैं।
लेकिन आज की हकीकत को अपना सच नहीं समझा जा सकता। इस अपने स्वरूप को देखना होगा ही, आईने में देखो या लिहाफ में मुंह छिपा कर देखो। टोनी मॉरिसन और एलिस वॉकर के उपन्यासों को साथ रख कर देखने से समय श्रृंखला बनती है। उस समय का विरोध भी हम स्वयं कर रहे थे, आज के इस अलमारी में बन्द कंकाल को भी हम ही खींच कर बाहर लायेंगे। Beloved और Color Purple दोनों उपन्यास ऐतिहासिक महत्व के हैं। एक जिस छोर पर हमें छोड़ता है, दूसरा उस छोर से हमें आगे ले चलता है। इतिहास की Escort Service हैं जैसे ये दो उपन्यास।
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दो सौ सालों तक श्वेत इन्सान अफ्रीकी देशों – प्रमुखतः माली, सिनेगल, गाम्बिया, गिनी, आईवरी कोस्ट, लाईबीरिया, घाना, टोगो, नाईजीरिया, कैमरून, अंगोला और कांगो इत्यादि से लाकर अमेरिका की मंड़ियों में बेचे जाते रहे। अलग अलग शर्तें थीं बेचने, खरीदने की। 1760 में ही अमरीकी राज्यों ने कानून बनाने शुरू कर दिए जिन के तहत वे उम्र भर के लिए खरीद लिए जाते थे। उन के बच्चे हुए या जो होंगे, वे भी मालिक की जायदाद होंगे। कई राज्यों में गुलामों को शादी करने की अनुमति नहीं थी। लेकिन धीरे–धीरे इस कानून में ढील दी गई। क्योंकि बच्चे होंगे तो गुलामों की आबादी बढ़ेगी। वे अपनी कोई ज़मीन जायदाद नहीं खरीद सकते थे। कानून उन का नहीं था। सरकार उनकी नहीं थी। क्या कानूनी है और क्या गैर कानूनी, इस बात का उस समाज में अश्वेत लोगों के लिए कोई अर्थ ही नहीं था।
Francis Harper आजाद माता पिता की संतान थी। Forest Leaves –उनका पहला कविता संग्रह 1845 में प्रकाशित हुआ था। कुछ ही वर्षों में इस संग्रह के 20 संस्करण प्रकाशित हुए। वे अमेरिकन एंटीस्लेवरी सोसाइटी की सदस्य के रूप में जगह–जगह जाकर गुलामी के विरोध में भाषण देती थीं । गुलाम प्रथा के अंतर वोट के अधिकार के लिए उन्होंने जोरदार आवाज उठाई। “Bury me in the Free Land’ उनकी अत्यंत प्रसिद्ध कविता है–
किसी नीचे मैदान में या ऊंची पहाड़ी पर
जब तुम मेरी कब्र बनाओगे
धरती की सबसे अधिक विनम्र और नगण्य
कब्रों में उसे बनाना
लेकिन वहां नहीं जहां लोग गुलाम हो
मैं चैन से नहीं सो पाऊंगी अगर मुझे
किसी गुलाम के काम के कदमों की आहट सुनाई दे
या मेरी मूक कब्र पर उसकी छाया पड़े
अगर गुलामों के एक जत्थे को
फांसी की तरफ ले जाते हुए
उनके पावो के जंजीरों की आवाज मुझे सुनाई देती रहे
या कांपती हवा में तैरती रहे
किसी मां के बदन का लहू पीते कोड़ों कीआवाज़ें
या उसके वक्ष से तोड़ दिए गए बच्चों की चीखें
या मुझे सुनाई दे किसी कैदी का निर्दोष आर्तनाद
जब उसे फिर से जकड़ा जाए जंजीरों में_ बेवजह
या आभास हो मुझे युवा लड़कियों को
मांओं से अलग करके उनकी सुंदरता के बिकने का
मेरी आंखों में तब एक उदास मातमी लौ कौंध जाएगी
और मेरे मृत्यु से पीले पड़े हुए गाल शर्म से लाल हो उठेंगे
मैं सिर्फ वहां चैन से सो सकती हूं
जहां किसी का दूरदराज भाई भी गुलाम न हो
मैं अपने लिए कोई ऊंची कब्र नहीं चाहती
जिस पर अपने आने वालों की नजर पड़े
मेरी दुखती हुई आत्मा की अंतिम पुकार यही है
कि मुझे वहां दफन करना जहां कोई भी गुलाम न हो
1861 में आज़ादी के ऐलान के बाद भी बीसवीं सदी के छठे दशक तक, रंग के आधार पर अलग करने की नीति चलती रही। सौ साल बाद -1954 में कानून बना कि रंग के आधार पर बच्चों को स्कूलों में दाखिले से मना नहीं किया जा सकता, उन्हीं बसों में अश्वेतों को बैठने से मना नहीं किया जा सकता। रेस्तरां, शौचालय, पार्क इत्यादि सब के सांझे प्रयोग के लिए होंगे इत्यादि। 1954 के इस कानून के विरोध में कई राज्यों ने उन स्कूलों को धन देना बंद कर दिया, जो काले बच्चों को दाखिल करते थे। वर्जीनिया राज्य में पब्लिक स्कूल इसी लिए बंद कर दिए गए। 1969 तक वर्जीनिया की एक काऊंटी में स्कूल पांच साल तक बंद रहे। गोरे बच्चे प्राईवेट स्कूलों में जाते रहे। सारे अश्वेत बच्चे और कुछ बहुत गरीब गोरे बच्चे किसी स्कूल में नहीं जा सके ।
ओएडा सैबेस्चयन द्वारा लिखित Words By Heart एतिहासिक उपन्यास है। कपास के खेतों पर काम करने वाले अश्वेत किसान की बेटी लेना अपनी योग्यता द्वारा श्वेत कस्बे में आत्मसम्मान से जीने की कोशिश करती है। उसके माता–पिता गरीब हैं पर लेना को धैर्य, प्यार और आपसी समझ की सीख ही मिली है। 1910 के आसपास आधारित यह उपन्यास उस समय के अमेरिकन समाज में रंगभेद नस्लभेद पर आधारित वर्गीकरण को रेखांकित करता है। श्वेत समाज में समान अधिकार पाने की एक बच्ची की साधारण सी इच्छा से उस कस्बे में हिंसा की आग भड़क उठती है । 1983 में इस उपन्यास को अमेरिका के नेशनल बुक अवार्ड से सम्मानित किया गया । यह उपन्यास लेखिका की मां औनानी की जिंदगी पर आधारित है।