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बगावत

बगावत

जब तेरे शोख झरोखों पे नज़र उठती है
उठने लगता है धुआं दिल की स्याह बस्ती से
और पसे पर्दाए-तस्वीरे जफा उस वक्त
कांप उठाती है हवा तेरी सितम दस्ती से

मैं तुझे खींच तो लाऊं तेरी दुनिया से नदीम
अपने तन्हा से तसुव्वर की गुजरगाहों में

और तेरी चश्मे गुलिस्तां में महकने सा लगूं
झूल सा जाऊं तेरी शोला फिशां बाहों में

लेकिन इस वक्त भी उस वक्त का सम बाकी है
जब मेरे फूल से अश्कों पे सिमटने के लिए
तेरा दामन मेरी जानिब तो बढ़ा था लेकिन
गिर गया गैर के कदमों से लिपटने के लिए

तूने खुद बढ़ के रफाकत की शमा गुल कर दी
कौन कहता है कि हम लोग वफ़ादार न थे

दर ब दर भटका किए हम तुझे पाने के लिए
हां मगर पहलुए उरियां के तलबगार न थे

एक बोसीदा सी अज़मत के तहफुज के लिए
तूने अखलाक से उतरी हुई मूरत तोड़ी

और चांदी से खनकते हुए चेहरों के लिए

तूने सोने सी दमकती हुई रूहें छोड़ी

तूने समझा है हमें राह के कंकड़ पत्थर

तुम जिन्हें  एक ही ठोकर से हटा सकते हो
हम नहीं रेत पर धुंधलाए हुए नक्शे कदम

तुम जिन्हें आंचल की लकीरों से मिटा सकते हो

सोचता हूं कि तुझे आंख के पानी की तरह
एक झटके में निगाहों से अलहदा कर दूं
दिले तारीख के धुंधले से दिए की अजमत

तेरी आंखों की हकीकत से ज्यादा कर दूं

वक्त नजदीक है जब तुमसे  हसीं जिस्मों को
गर्मिए जज्बए- सादिक से पिघलने होगा
और उल्फत भरी रुहों की इबादत के लिए

अपनी वहशत जदा गारों से निकलना होगा

तुमको भी वक्त के हाथों से उलझने के लिए
जाने किस गर्दिशे दौरां की नजर होना है

तुम भी देखोगे ज़मीदोज़ मुसीबत का जमाल
तुमको भी आंख के कोनों से लहू रोना है

दिल की तस्कीं के लिए लाख बहाने ढूंढे

और फितरत ने भी उकसाया बगावत के लिए
क्या करूं हाय मगर दिल है तड़प उठता है
तेरी रहमत के लिए तेरी इनायत के लिए।।


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