लोक मानस और कविता
कविता एक लंबे समय से भीड़ में एक बच्चे की तरह खो गई थी। ऐसा बच्चा , जिसे कोई खोज भी नहीं रहा था। जिस तरह का बोलबाला आधे अधूरे मीडिया कार्यक्रमों में नजर आता है , वह सिर्फ थोड़ी सी तालियों से खुश होकर घर लौट जाती है। कविता, किसी भी भाषा की कविता, लोकमानस का हिस्सा जब रही हो- ऐसा समय काफी पहले बीत गया है। लेकिन आज भी केवल चलताऊ मंच कविता के इलावा, दूसरी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कविता है ही। अल्पकाल जीवित ही सही। दीर्घायु कविता आज बहुत कम है। किसी भी चीज के लिए, एक तरह की नियति समय खुद निश्चित करता है। समय का अर्थ घंटे ,दिन, माह, साल नहीं। समय का अर्थ है, बदलती हुई परिस्थितियां, नए मापदंड, नए मूल्य। लेकिन फिर भी, हम बार-बार मुड़कर अतीत की तरफ तो देखते ही हैं। जो भी प्रयास जारी है , आज और कल के बीच की कड़ी बनकर इस दिशा में जारी है , उनसे काफी आशा है। कविता केवल क्षणिक मानसिकता के मनोरंजन का साधन मात्र बनकर ना रह जाए ,ऐसी कोशिश की जरूरत है। लोगों के बीच आना होगा। लोकमानस विस्तृत आकाश की तरह है जहां किसी चीज के लिए कभी भी जगह की कमी नहीं होती।