आज तुम्हारी सब की <br>
साझी और अलग-अलग चुनौती है<br>
कि तुम सब जो हो,<br>
वास्तव में वही होना चाहते हो कि नहीं।<br>
आज की सांझ<br>
कल के जिस सूर्य को जन्म देगी<br>
वह कंदराओं के भीतर टिमटिमाने वाला<br>
मद्धिम मद्धिम दीपक जैसा नहीं होगा<br>
जिसकी रोशनी में<br>
सब कुछ मायावी और सुंदर लगता है<br>
लेकिन जिस दीपक के आधार में<br>
जमे हुए अंधेरे से तुम<br>
हर छोटे-मोटे युद्ध के बाद<br>
हताहत होकर लौटते हो<br>
लेकिन लौटते अवश्य हो – मरते नहीं<br>
कल प्रातः के बाद<br>
तुम्हारा युद्ध सर्वव्यापी होगा<br>
हर घर में ,हर मंदिर–गिरजे में<br>
हर शिक्षा संस्थान में<br>
हर कारखाने, कार्यालय में<br>
जहां मानव और स्वयं उसकी प्रकृति<br>
एक दूसरे को<br>
पराजित करने के प्रयास में<br>
चुक जाते हैं।<br>
आज के बाद तुम्हारा लौटना नहीं होगा<br>
हताहत होकर लौटना नहीं होगा<br>
तुम्हारी नदी<br>
तुम्हारा शव -एक विजयी शव<br>
अपने वक्ष पर उछालती हुई<br>
उस महा समुद्र को समर्पित करेगी<br>
जहां अस्तित्व और अनस्तित्व का अंतर<br>
स्वयं समाप्त हो जाता है।<br>
अन्यथा<br>
लौट चलो अभी<br>
अपनी इस रक्तिम नदी की तरफ<br>
पीठ फेर कर चल पड़ो<br>
उसी द्वारपाल रक्षित भवन की तरफ़<br>
और उसे निर्भय करते हुए<br>
स्वर्ण मंडित पूजा घरों की तरफ़<br>
और उनके पीछे से होकर<br>
जाते हुए उन सुरक्षित रास्तों की तरफ़<br>
जो कुछ ही देर में<br>
तुम्हारे कंदरा द्वार तक<br>
तुम्हें पहुंचा देंगे<br>
द्वारपाल पत्थर हटाकर<br>
तुम्हें भीतर आने का निमंत्रण देगा<br>
भीतर का सुखद झीना झीना अंधेरा<br>
तुम्हें चमत्कृत करे,<br>
इससे पहले ही<br>
तुम अपने घुटनों पर बैठकर<br>
प्रार्थना रत हो जाना<br>
कि हे प्रभु हम सौ साल जीयें।<br>